21/09/2024

फ़िल्म समीक्षा: ब्रह्मास्त्र पार्ट 1 शिवा

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ब्रह्मास्त्र (Brahmastra) एक ऐसा अस्त्र है, जिसका त्रेता युग और द्वापर युग में उल्लेख मिलता है। यह एक अचूक अस्त्र है, जिसका वार कभी खाली नहीं जाता। इस हकीकत के साथ निर्देशक ने अपनी कल्पनाशक्ति से एक ‘अस्त्रावर्स’ बनाया है जो क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। निर्देशक अयान मुखर्जी ने 11 साल पहले ‘ब्रह्मास्त्र’ की कल्पना की थी और इसे तीन भागों में बनाने का निर्णय लिया था। पहला पार्ट शिवा है। फिल्म के अंत में वे इसके दूसरे भाग की भी घोषणा भी कर देते हैं, जो ब्रह्मास्त्र: पार्ट 2 देवा होगा।

ब्रह्मास्त्र की कहानी

‘ब्रह्मास्त्र’ की कहानी एक डीजे का काम करने वाले शिवा (रणबीर कपूर) की जिंदगी के इर्द-गर्द घूमती है। अपनी आतंरिक शक्तियों से अनजान शिवा अनाथ है। उसके माता-पिता कौन हैं, ये भी उसे नहीं पता। बस इतना याद रहता है कि एक आग में उसकी मां जल गई थीं, लेकिन वो जिंदा बच गया था। वो एक अनाथालय में बच्चों के बीच रहते हुए अपनी जिंदगी जी रहा होता है। एक बात और शिवा को आग नहीं जला पाती। दशहरा महोत्सव में शिवा की मुलाकात ईशा (आलिया भट्ट) से होती है। उसे देखते ही पहली नजर में उससे प्यार करने लगता है। अपने दिल की बात ईशा से कह देता है। इसी बीच उसे सपना आता है कि एक शख्स की तीन लोगों ने मिलकर हत्या कर दी है। इसके बाद वो लोग वाराणसी में रहने वाले एक दूसरे शख्स की हत्या करने जाने वाले हैं। दशहरा पूजा के दौरान शिवा को अखबार में एक खबर दिखती है। उसे देखने के बाद शिवा को पता चलता है कि सपने में उसने जिस शख्स की हत्या की घटना देखी थी, वो देश के महान वैज्ञानिक मोहन भार्गव (शाहरुख खान) थे। इसके बाद तीनों हत्यारे आर्टिस्ट अनीस (नागार्जुन) की हत्या करने के लिए वाराणसी जाने वाले हैं। शिवा और ईशा आर्टिस्ट अनीस की जान बचाने के लिए वाराणसी जाते हैं। वहां उनकी मुलाकात जुनून (मौनी रॉय) से होती है, जो कि ब्रह्मांश के सदस्यों की हत्या करके उनसे ब्रह्मास्त्र के तीन टुकड़े हासिल करना चाहती है। जुनून ये सबकुछ अपने मालिक ‘ब्रह्मदेव’ के कहने पर करती है। शिवा और ईशा किसी तरह से अनीस को बचाकर ब्रह्मांश के गुरु (अमिताभ बच्चन) के पास जाने के लिए निकलते हैं। रास्ते में जुनून अपने साथियों के साथ हमला कर देती है। शिवा को ब्रह्मास्त्र का टुकड़ा देकर अनीस उनसे लड़ने लगता है। इस दौरान उसकी मौत हो जाती है लेकिन किसी तरह से शिवा और ईशा गुरुजी के पास पहुंच जाते हैं। इसके बाद ब्रह्मास्त्र को बचाने की मुहिम शुरू होती है।

ब्रह्मास्त्र की समीक्षा

बॉलीवुड पर हमेशा से ही आरोप लगता रहा है कि उनकी फिल्मों में हिंदू धर्म, समाज और संस्कृति को नकारात्मक रूप में पेश किया जाता रहा है। वैसे ये कुछ हद तक सच भी है कि ज्यादातर बॉलीवुड फिल्मों में हिंदू देवी-देवताओं, उनके प्रतीकों और प्रतिमानों का मजाक उड़ाया गया है। उनको खलनायक के रूप में पेश किया गया है लेकिन फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ बॉलीवुड के ये सारे पाप धोने का काम करती है। इसमें शुरू से लेकर अंत तक जिस तरह से हिंदू धर्म, देवी-देवताओं का गुणगान किया गया है, संस्कृत के श्लोकों के जरिए हिंदू माइथोलॉजी में वर्णित शस्त्रों की शक्ति बताई गई है। ऐसा भारतीय सिनेमा में विरले ही देखने को मिलता है। इसके साथ ही उन लोगों की शिकायत भी दूर हो जाएगी, जो ये कहा करते हैं कि बॉलीवुड मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स की तरह सुपरहीरो वाली फिल्मों का निर्माण नहीं कर पाता।

निर्देशक के तौर पर अयान मुखर्जी ने एक ऐसी फिल्म बनाने की कोशिश की है, जिसे हिंदी सिनेमा के दिग्गज भी इस दौर में बनाने की हिम्मत नहीं कर पाए। मूल पौराणिक कथाओं पर फिल्में खूब बनी हैं। लेकिन, पौराणिक परिदृश्यों में काल्पनिक कथाएं गढ़ने का ये एक अलग ही प्रयोग है। अयान मुखर्जी हिंदी में अपना नाम ‘अयन मुकर्जी’ लिखते हैं, अंग्रेजी (Ayan Mukerji) में लिखे अपने नाम की वर्तनी के हिसाब से। फिल्म देखकर ये भी पता चलता है कि पौराणिक कथाओं, कॉमिक्स की दुनिया भी उनकी अंग्रेजी की ही रही है। फंतासी सिनेमा के संदर्भ बिंदु भी वह अंग्रेजी फिल्मों से ही लेते रहे हैं। फिल्म में उनकी कोशिश, कहानी में उनका विश्वास और एक दुसाध्य कार्य को पूरा करके फिल्म को परदे तक पहुंचाने का उनका हौसला काबिले-तारीफ है। लेकिन, अगर उन्हें इस फिल्म की दूसरी कड़ी बनानी है तो उन्हें अपनी टीम के कील-कांटे दुरुस्त करने होंगे। फ़िल्म का संवाद-लेखन बेहद कमजोर पक्ष है। फिल्म के संवाद कहानी के वजन को बढ़ाने में मदद नहीं करते।

अभिनय एवं अन्य तकनीकी पक्ष

सभी कलाकारों ने अच्छा काम किया है। इसमें आर्टिस्ट अनीस के किरदार में दक्षिण के सुपरस्टार नागार्जुन और ‘स्वदेश’ वाले वैज्ञानिक मोहन भार्गव के किरदार में शाहरुख खान ने बेहतरीन काम किया है। दोनों का कैमियो रोल है, लेकिन दोनों के बिना फिल्म अधूरी लगती। नागार्जुन ने महज 10 मिनट के किरदार में समां बांध दिया है। नंदी-अस्त्र के रूप में जब उनकी आवाज गूंजती है, तो रोम-रोम रोमांचित हो जाता है। यही बात शाहरुख के लिए भी कही जा सकती है कि उन्होंने ‘वानरास्त्र’ के किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शिवा के किरदार में रणबीर कपूर और ईशा के किरदार में आलिया भट्ट ने भी अच्छा काम किया है। उनके अभिनय को बेहतरीन तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन कहानी और किरदार के साथ उन्होंने न्याय किया है। उनकी रियल केमेस्ट्री, रील पर भी अच्छी दिखती है। गुरुजी के रोल में अमिताभ बच्चन भी अच्छे लगे हैं। उनको जो लुक दिया गया है, वो अच्छा लगता है। जुनून के किरदार में मौनी रॉय ने कमाल किया है। ये किरदार उनके करियर के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है।

क्या-क्या अच्छा है?

रणबीर कपूर और आलिया भट्ट हिंदी सिनेमा के हाल के दिनों के सबसे चर्चित प्रेमी युगलों में से एक रहे हैं। दोनों के बीच प्रेम की जो लौ इस फिल्म की शूटिंग के दौरान जगी, इसकी झलक इस फिल्म में मिलती है। अगर आपने अमिताभ बच्चन-रेखा, धर्मेंद्र-हेमा मालिनी की फिल्में देखी हैं तो आपको कैमरे के सामने दोनों के चेहरे पर एक अलग नूर दिखता है। ये तेज प्रेम का है। रणबीर कपूर और आलिया के चेहरे पर भी ये नूर इस फिल्म में नज़र आता है। और, संयोग एक ये भी है कि फिल्म के क्लाइमेक्स में प्रेम की शक्ति को किसी भी लौकिक या अलौकिक शक्ति से बड़ा बताने की व्याख्या भी है। ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ हिंदी सिनेमा का वह मौका है, जिसको अगर बहिष्कारों और घोर निंदकों से बचाया जा सका तो यह मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स सरीखा एक ‘अस्त्रावर्स’ हिंदी सिनेमा में रच सकती है। फ़िल्म के शानदार विजुअल्स फ़िल्म को देखने लायक बनाते हैं। यकीन मानिये ऐसे विजुअल्स आपको ₹ 1000 करोड़ के बजट में ही दिख सकेंगे जो इन्होंने मात्र ₹ 400 करोड़ में कर दिखाये हैं। इसकी तारीफ़ अलग से करनी चाहिये।

फिल्म में कई चौंकाने वाले फैक्टर भी हैं। जैसे कि ब्रह्मांश के सदस्य वैज्ञानिक मोहन भार्गव के किरदार में शाहरुख खान, अनीस के किरदार में नागार्जुन और जुनून के निगेटिव रोल में मौनी रॉय की दमदार मौजूदगी। शाहरुख ने अपने किरदार को जिस तरह से निभाया है, उसे शायद ही कोई दूसरा निभा पाता। ‘वानरास्त्र’ धारक मोहन भार्गव के किरदार में उन्होंने भले ही कैमियो किया है, लेकिन उनके किरदार के बिना फिल्म की कल्पना नहीं की जा सकती। अयान ने उनको सरप्राइज रखा था और वो वाकई में सरप्राइज पैकेज साबित हुए हैं। फ़िल्म के 2 गीत ‘केसरिया’ और ‘देवा देवा’ को पर्दे पर देखना-सुनना अच्छा लगता है।

क्या-क्या अच्छा नहीं?

कुछ भी परफेक्ट नहीं होता। ऐसे में निश्चित है कि इस फिल्म में भी खामियां हैं। सबसे बड़ी खामी फिल्म की पटकथा में है। अयान मुखर्जी ने फिल्म की कहानी और पटकथा खुद लिखी है। ऐसे में पटकथा का कमजोर होना अखरता है। ‘ये जवानी है दीवानी’ और ‘टू स्टेस्ट्स’ जैसी फिल्मों के संवाद लेखक हुसैन दलाल ने इस फिल्म के डायलॉग लिखे हैं जो बेहद कमज़ोर हैं। यदि पटकथा और संवाद दुरुस्त होते तो यकीन मानिये ये भारतीय सिनेमा की एक बेहतरीन फिल्म साबित होती। फिल्म में संगीत प्रीतम का है, जबकि बैकग्राउंड स्कोर साइमन फ्रैंग्लेन ने दिया है। वैसे तो इसके गाने अच्छे हैं, लेकिन जिस तरह की कहानी चल रही होती है, उसमें गाने खटकते हैं। कहानी और गानों के बीच कोई संबंध नज़र नहीं आता। फिल्म का संपादन और चुस्त हो सकता था। फिल्म में शिवा की पृष्ठभूमि से फिल्म का भविष्य तय किया गया है लेकिन ईशा कौन है, उसकी पृष्ठभूमि क्या है, इसके बारे में बस इतना पता चलता है कि वह अमीर है। कहानी में आलिया भट्ट का किरदार बहुत कमज़ोर है जो कहानी से जुड़ा हुआ नहीं लगता।

देखें या न देखें

‘ब्रह्मास्त्र’ को सिनेमाघर में ही देखना चाहिये क्योंकि असली मजा तो 3 डी में ही आयेगा। अयान मुखर्जी ने अपनी कल्पना के जरिए शस्त्रों का जो संसार रचा है, वो निश्चित ही देखने लायक तो है। इसमें शिवा, अनीस, मोहन, गुरुजी और जुनून, ज़ोर, रफ़्तार जैसे किरदार धार देने का काम करते हैं। शस्त्र संहार के प्रतीक होते हैं, लेकिन शस्त्रों की इस दुनिया में प्यार को बहुत सुंदर तरीके से पेश किया गया है। क्लाइमैक्स भले ही हिंसक है, लेकिन अंत यही कहता है कि प्यार जैसा पवित्र कुछ भी नहीं है। अयान का संदेश साफ है, प्रेम करो, प्रेम से जिओ। इसलिए घृणा और नफरत का माहौल बनाने वाले लोग जो बहिष्कार मुहिम का झंडा बुलंद किए हुए हैं, उनको ये फिल्म एक बार ज़रूर देखनी चाहिए। शायद अयान सहित पूरी टीम की मेहनत से उनका हृदय परिवर्तन हो जाये।

अगले पार्ट के लिए मेरा अनुमान

जैसा कि इस फ़िल्म में बताया गया है कि शिवा (रणबीर कपूर) के माता-पिता अमृता और देव हैं और देव ही अपनी शक्तियां बढाने के लिए ‘ब्रह्मास्त्र’ को प्राप्त करना चाहता है। अगले पार्ट में मूल कहानी यहां से पीछे जायेगी जिसमें देव और अमृता की प्रेम कहानी के साथ इनका आपसी टकराव दिखाया जायेगा और साथ ही कुछ नये चरित्र (ब्रम्हांश समूह के लोग) भी दिखाये जायेंगे जिससे और भी कुछ नये अस्त्र पता चलेंगे। हालांकि अभी अगले पार्ट की कास्टिंग नहीं हुई है लेकिन देव का जो शरीर दिखाया है उससे लगता है वो किरदार रणवीर सिंह या ऋतिक रोशन निभा सकते हैं। दीपिका पादुकोण शायद अमृता का किरदार निभाये। इसके बाद इस कहानी का अंत इसके तीसरे पार्ट में ‘देवा और शिवा’ के आमने-सामने से होगा। यदि ऐसा होता है तो बहुत ही आनंद आने वाला है। एक सिने प्रेमी के तौर पर ये मेरा अनुमान है जो ग़लत भी हो सकता है। ~गोविन्द परिहार (03.10.22)

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