फ़िल्म समीक्षा: आदिपुरुष
1 min readसाल 2007 में एक फिल्म आई थी ‘आग’ (राम गोपाल वर्मा की आग) जो हिन्दी सिनेमा की सबसे लोकप्रिय फिल्म ‘शोले’ की रीमेक थी। इस फिल्म में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, अजय देवगन जैसे सुपरस्टार भी मुख्य भूमिका में थे लेकिन आज ये फिल्म बॉलीवुड की सबसे खराब फिल्मों में शुमार की जाती है। ऐसा ही कुछ ‘आदिपुरुष’ के साथ हुआ है। तान्हाजी जैसी हिट देने वाले निर्देशक ओम राउत और ‘बाहुबली’ से देश के पैन इंडिया स्टार बने प्रभास की ‘आदिपुरुष’ निराश ही नहीं करती बल्कि अपने बेहद औसत प्रस्तुतिकरण के लिए चौंकाती है।
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आदिपुरुष की कहानी
फिल्म मेकर्स के अनुसार आदिपुरुष, रामायण नहीं बल्कि रामायण से प्रेरित एक कहानी है। आदिपुरुष की शुरुआत महर्षि वाल्मीकि की रामायण की तरह ही होती है, जहां ‘राम सिया राम’ गीत के माध्यम से बैकड्रॉप में राम-सीता का विवाह, कैकेयी द्वारा राजा दशरथ से तीन वचन की मांग, राम-सीता-लक्ष्मण का वनवास, छोटे भाई भरत द्वारा बड़े भाई की पादुकाएं ले जाना जैसे प्रसंग दर्शाए गए हैं।
राघव (प्रभास) अपनी पत्नी जानकी (कृति सेनन) और छोटे भाई शेष (सनी सिंह) के साथ पिता के दिए गए वचनों का पालन करने के लिए वनवास काट रहे हैं। उधर लंका में रावण की बहन शूपर्णखा अपनी कटी हुई नाक लेकर भाई लंकापति रावण (सैफ अली खान) के पास जाकर रोती है। वह भाई को बदला लेने के लिए ब्रह्मांड सुंदरी जानकी को अपहृत कर लाने के उकसाती है। जंगल में जानकी को एक स्वर्ण मृग (हिरण) दिखाई देता है, जिसे पाने के लिए वह लालायित है। जानकी की इच्छा को पूरा करने के लिए ‘राघव’ स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हैं, इस बात से अंजान कि वह महज रावण का एक छलावा है। शेष को अपने भाई राघव की मदद की गुहार सुनाई देती है। वह जानकी को लक्ष्मण रेखा पार न करने की हिदायत देकर राघव की सहायता के लिए निकल पड़ते है और इधर रावण भिक्षा लेने के बहाने साधु का वेश धारण करके जानकी को बांध कर ले जाता है। बस उसके बाद राघव द्वारा सुग्रीव और हनुमान की मदद से लंकेश का संहार ही कहानी का क्लाइमेक्स है। इसके बीच में जटायु-रावण का युद्ध, शबरी के बेर, बाली-सुग्रीव का मल्ल युद्ध, रामसेतु का बनना, हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी का लाना, इंद्रजीत वध जैसे प्रसंगों को भी दिखाया गया है।
आदिपुरुष की समीक्षा
निर्देशक ओम राउत ने इसे मॉडर्न लुक देने के लिए रावण की लंका को ग्रेइश कैसल लुक दिया है, जो रावण की सोने की चमचमाती लंका के के बजाय हॉलीवुड फ़िल्मोंं के सेट जैसी दिखती है। फिल्म का तीन घंटे का रन टाइम तब और खलने लगता है, जब सेकंड हाफ में कहानी सिर्फ VFX से सजे राम-रावण के युद्ध में सिमटकर रह जाती है। हालांकि इंटरवल से पहले कहानी विजुअल इफेक्ट्स के साथ अच्छी लगती है। बाली और सुग्रीव को वानरों का विशुद्ध रूप दिया है, तो रावण के लुक, कॉस्ट्यूम और उसके शस्त्रों को कुछ ज्यादा ही मॉडर्नाइज कर दिया गया है। रावण को एक पिशाच (चमगादड) जैसे जीव की सवारी करते दिखाया गया है, उसके अस्त्र-शस्त्र ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ की याद दिलाते हैं। एक सीन में रावण चमगादड को मांस खिलाते हुए दिखाया है। फिल्म के क्लाईमेक्स में लगभग 20 मिनट तक कोई संंवाद ही नहीं जिससे क्लाईमेक्स भी बोर करने लगता है।
गीत-संगीत
इस फिल्म में दो ऐसी चीज़ है, जो इस फिल्म को थोड़ी-बहुत देखने लायक बनाती है, दो गाने- राम सिया राम और रावण पर फ़िल्माया गया गाना ‘शिवोहम’ साथ में फिल्म का बैकग्राउंड म्यूज़िक। फिल्म में अपने कई कमज़ोर सीन्स में बैकग्राउंड स्कोर की मदद लेती है और दूसरी चीज़ हैं सैफ अली खान का अभिनय। सैफ़, रावण को भरपूर खतरनाक और डरावना बनाने की कोशिश करते हैं। काफी हद तक इसमें सफल भी हो जाते हैं हालांकि निर्देशक और पटकथा से उन्हें सहारा नहीं मिलता। एक तो रावण के किरदार की हाइट फिल्म में दिखने वाले अन्य सभी किरदारों से ज़्यादा है, जब वो चलते हैं, तो ऐसा लगता है कि रावण किसी वीडियो गेम का हिस्सा है। उनके हिस्से भी घिसे हुए डायलॉग्स आए हैं।
अभिनय एवं तकनीकी पक्ष
अभिनय के मामले में प्रभास ने निराश किया है। रावण के रूप में सैफ अली खान खूब जंचते हैं, मगर डिजिटिल टेक्नीक से उनकी कदकाठ को कुछ ज्यादा ही विशालकाय दिखाया गया है। जानकी के रूप में कृति सेनन मिसफिट लगी हैं। लक्ष्मण के रूप में सनी सिंह में वो तेज नजर नहीं आता, जिसके लिए लक्ष्मण पहचाने जाते हैं। बजरंग के रूप में देवदत्त ने अपने चरित्र के साथ न्याय किया है लेकिन उनके हिस्से में बहुत हास्यापद संवाद आये हैं जिससे उनका चरित्र प्रभाव नहीं छोड पाता। इंद्रजीत की भूमिका में वत्सल सेठ को अच्छा-खासा स्क्रीन स्पेस मिला है, लेकिन संवाद और प्रस्तुतिकरण निराश करता है। मंदोदरी के किरदार में सोनल चौहान महज दो सीन में नजर आती हैं।
फ़िल्म के संवाद के कुछ उदाहरण
” कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, आग तेरे बाप की और जलेगी भी तेरे बाप की” (अपनी पूंछ में आग लगने के बाद ये हनुमान जी मेघनाद से कहते हैं)
“बोल दिया, जो हमारी बहनों को हाथ लगाएंगे, उनकी लंका लगा देंगे” (सीताजी से मिलने के बाद हनुमान जी, रामजी से कहते हैं)
‘आदिपुरुष’ के फर्स्ट लुक को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था और उसके बाद उसमें काफी बदलाव किए गए। मगर मूल चीजें जस की जस रह गईं। वीएफएक्स और सीजीआई का काम प्रभावशाली नहीं है। एनिमेशन भी बहुत बेकार है लगता ही नहीं कि इस फिल्म की लागत 600 करोड रुपये है। सबसे बड़ी दिक्कत आती है, स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स में। मनोज मुंतशिर के लिखे डायलॉग्स में जहां राघव और रावण के चरित्र समृद्ध हिंदी जैसे, ‘जानकी में मेरे प्राण बसते हैं और मर्यादा मुझे अपने प्राणों से भी प्यारी है।’ बोलते नजर आते हैं, वहीं दूसरी ओर, बजरंग (देवदत्त) और इंद्रजीत (वत्सल सेठ) ‘तेरी बाप की जलेगी’, ‘बुआ का बगीचा समझा है क्या?’ जैसे संवाद बोलकर उपहास का पात्र बन जाते हैं।
कुल मिलाकर ‘आदिपुरुष’ को नए जमाने की रामायण के तौर पर पेश करने की नाकाम कोशिश की गई है। ‘आदिपुरुष’ में देखने लायक कुछ नहीं है क्योंकि बहुत कुछ दिखाई ही नहीं देता। फिल्म अंधेरी लगती है, ऐसा लगता है कि ‘आदिपुरुष’ को हॉलीवुड मेकर्स ने बनाया है, या फिर फिल्म अपनी खामियों को छुपाने की कोशिश कर रही है।
देखें या न देखें
‘आदिपुरुष’ एक औसत से नीचे की फिल्म है। यदि आप थोडे से भी धार्मिक हैं तो निराश ही नहीं, दुःखी भी होंगे क्योंकि फ़िल्म की कहानी तो रामायण से ली गयी लेकिन तथ्यों पर आधारित नहीं है। यदि इसकी तुलना रामायण से की जाये तो रेटिंंग माइनस मेंं देनी पडेगी। मैंं इसकी रेटिंंग रामायण से प्रेरित कहानी के आधार पर दे रहा हूँ। 0.5 अंक सैफ़ अली खान के अभिनय के लिए और 1 अंक गीत-संगीत के लिए। कुल रेटिंग- 1.5/5 ~गोविन्द परिहार (18.06.23)