फ़िल्म समीक्षा: ओएमजी 2
1 min readओएमजी 2 (OMG 2) अक्षय कुमार की फिल्म नहीं है, कम से कम बतौर हीरो तो कतई नहीं। ये फिल्म है लेखक और निर्देशक अमित राय की। अभिनेता अक्षय कुमार यहां उत्प्रेरक की भूमिका में हैं। ये फिल्म है पंकज त्रिपाठी और यामी गौतम जैसे कलाकारों की। अक्षय के क्रेडिट को खारिज नहीं किया जा सकता। बस ये अक्षय कुमार ‘द सुपरस्टार’ की फिल्म नहीं और यही इसकी सबसे बड़ी जीत भी है। हमारे समाज में मास्टरबेशन को न केवल अश्लील और गंदा माना जाता है बल्कि कई लोग इसे पाप की नजर से भी देखते हैं। सेक्स और सेक्स से जुड़ा कोई भी मुद्दा सदियों से हमारे यहां वर्जित रहा है। अगर सेंसर बोर्ड ने फिल्म को 27 कट्स और ‘ए’ सर्टिफिकेट नहीं दिया होता तो आज के दौर का यह जरूरी विषय हर अपनी टारगेट ऑडियंस तक पहुंच पाता और इस विषय पर उन्हें एक नया नजरिया दे पाता। सेंसर बोर्ड इस फिल्म का सही मायने में दुश्मन साबित हुआ है।
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‘ओएमजी 2’ की कहानी
भगवान शिव अर्थात महाकाल के परम भक्त कांतिशरण मुद्गल (पंकज त्रिपाठी) के किशोर बेटे विवेक (आरुष शर्मा) पढ़ने-लिखने में तेज और सांस्कृतिक कार्योंं आगे रहने वाला लड़का है। एक दिन स्कूल में विवेक के दोस्त उसके लिंग और सेक्सुएलिटी को लेकर मजाक उडाते हैं जिससे विवेक बहुत अधिक परेशान हो जाता है। वह खुद में कोई कमी समझकर नीम-हकीमों से दवा लेकर मास्टरबेशन की अति कर देता है और उसे अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ जाती है। मगर इसी बीच स्कूल में किया गया उसका ये काम वायरल कर दिया जाता है। उसे न केवल स्कूल से निकाल दिया जाता है बल्कि उसके पूरे परिवार को समाज और शहर में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। अब इस परिवार के पास शहर छोड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता, उधर विवेक शर्म के मारे अपनी जान लेने का प्रयास भी करता है, मगर तभी भगवान शिव की कृपा होती है और उनके दूत (अक्षय कुमार) आकर कांतिशरण को रास्ता दिखाते हैंं।
‘ओएमजी 2’ की समीक्षा
‘OMG 2’ के निर्माताओं ने अक्षय कुमार की स्टार पावर को बहुत बढिया इस्तेमाल किया है। फिल्म एक सेंसिबल सब्जेक्ट पर बनी है। लोगों तक पहुंचनी चाहिए। इस मकसद से एक स्टार इसका चेहरा बना लेकिन उस चेहरे की परछाई में असली हीरो कहीं नहीं ढकता। वो है फिल्म की कहानी। किसी भी पॉइंट पर अक्षय कहानी को ओवरशैडो करते नहीं दिखते। वो कहानी के पहिये को आगे ले जाने का काम ज़रूर करते हैं लेकिन उस पहिये को धक्का बाकी किरदार ही दे रहे हैं। अक्षय के कैरेक्टर को बेहद ज़रूरी ढंग से ही फुटेज दी गई है। उन्होंने काम भी अच्छा किया। कुछ सीन्स में मज़ेदार लगते हैं।
फिल्म ‘ओएमजी 2’ बदलते समय की सच्ची पुकार है। जो सत्य है वही सुंदर है जो सुंदर है वही शिव है। सत्यम् शिवम् सुंदरम् की अवधारणा भी यही है। बहुत हल्ला मचता है जब हम नकली समाज की नकली कहानियों पर बनी नकली फिल्में देखते हैं जिनमें दर्शकों को सोचने की दिशा बदलने जैसी कोई बात नहीं होती है और जब बात होती है तो ‘ओएमजी 2’ जैसी फिल्में बनती हैं जिनकी रिलीज के लिए इनके निर्माताओं को पापड़, पूड़ी, पराठे सब बेलने पड़ते हैं। फिल्म को ‘केवल वयस्कों के लिए’ जैसा प्रमाण पत्र देने की जरूरत भी कतई नहीं है। फिल्म सभी किशोरों को देखनी चाहिए और हो सके तो तमाम स्कूलों को अपने आठवीं कक्षा के बाद के सारे बच्चों को ये फिल्म समूह में ले जाकर दिखानी चाहिए।
ये फिल्म है उस देश में यौन शिक्षा को वर्जित मानने वाली शिक्षा पद्धति पर जिस देश में कामसूत्र लिखा गया और जिस देश में रचित पंचतंत्र की कहानियों में ‘काम’ शिक्षा का उल्लेख हुआ। उसी देश में विदेशी शिक्षा पद्धति से चलने वाला शहर का एक नामी स्कूल बच्चे पर लांछन लगाता है। शिवगण को विष पीने को बाध्य करता है। और, ये शिवगण भी इस दौर में आकर रात को महाकाल का प्रसाद पीने के साथ साथ फिल्म ‘गदर’ का गाना भी गाता है। अपने विषय, अपने निर्देशन, अपनी पटकथा और अपने समग्र प्रभाव में फिल्म ‘ओएमजी 2’ एक कमाल की फिल्म है। फिल्म के कई संवाद बेहद दमदार हैं जिससे कहानी में वजन आता है।
अभिनय
जबरन निष्कासित किए गए एक किशोर बालक और एक बालिका पिता के रूप में पंकज त्रिपाठी ने अपनी अभिनय क्षमता भरपूर प्रयोग किय है। बड़ा नाम भले फिल्म में अभिनेता के रूप में अक्षय कुमार का हो लेकिन ये फिल्म पंकज त्रिपाठी की है। स्कूल की वकील कामिनी के रूप मेंं यामी गौतम ने भी अपने अभिनय का एक नया रूप दिखाया है। यामी गौतम ने अपने कैरेक्टर को ऐसे दिखाया है कि जैसे ही वो कमरे में एंट्री लें, हर कोई रुककर उनकी बात सुने। कामिनी वो सारे तर्क देती है जो हमारे मन में धंसे हुए हैं। बस जज किए जाने के डर से हम बोलते हैं जो हम में से अधिकांश लोगों को सही ही लगते हैं।
अगर आप अक्षय कुमार के फैन हैं, तो थोड़ी निराशा हो सकती है, क्योंकि इस बार अक्षय स्क्रीन पर बहुत ही कम नजर आए हैं, जिस तरह से वह इस फिल्म के पार्ट वन में दिखे थे, उसके मुकाबले फिल्म के दूसरे पार्ट में उनका स्क्रीन प्रजेंस थोड़ा कम नजर आता है लेकिन वे जब भी पर्दे पर आते हैं, छा जाते हैं। सेंसर बोर्ड की वजह से वे एक शिव दूत हैं लेकिन आप फिल्म देखेंगे तो लगेगा वो भगवान शिव ही हैं। उनका अभिनय कमाल एवं डायलॉग डिलीवरी भी बेहतरीन रही है।
स्कूल संचालक के रूप में अरुण गोविल, डॉक्टर की भूमिका में बृजेंद्र काला और मेडिकल स्टोर मालिक के रूप में पराग छापेकर ठीक लगे हैं। पवन मल्होत्रा ने जज के रूप में अच्छा कार्य किया है। अंग्रेजी में ही अदालत चलाने के अभ्यस्त एक जज का जब एक विशुद्ध हिंदी बोलने वाले से पाला पड़ता है तो पूरी बात समझने के लिए जिस तरह वह अपने सहयोगी की मदद लेता है, वे दृश्य फिल्म में हास्य रस की कमी को पूरा करते हैं। फिल्म में और दृश्य हैं जो सोचने पर विवश करते हैं।
निर्देशन
परेश रावल, ओम पुरी और पवन मल्होत्रा को लेकर 13 साल पहले फिल्म ‘रोड टू संगम’ बनाने वाले निर्देशक अमित राय को इस फिल्म के लिए आने वाले समय में एक दिशा निर्देशक (ट्रेंड सेटर) फिल्मकार के रूप में याद किया जाये तो हैरानी नहीं होनी चाहिये। यौन शिक्षा जैसे वर्जित विषय पर संपूर्ण मनोरंजक फिल्म बनाना अपने आप में बहुत मुश्किल काम है, ऊपर से जब ऐसे किसी फिल्मकार को फिल्म की रिलीज के लिए वह सब सहना पड़े जो इस फिल्म की रिलीज से पहले लेखक एवं निर्देशक अमित को सहना पड़ा, तो समझ आता है कि बातें हम कितनी भी बड़ी बड़ी कर लें, अपने दौर के किशोरों को समझने में हम नाकाम ही रहे हैं। कोर्ट के एक सीन में सेक्स वर्कर से कैसे पंंकज त्रिपाठी अपनी बात निकलवाते हैं वो बेहतरीन लेखन का ही कमाल था। फिल्म के क्लाइमेक्स में जब जज का बेटा यौन शिक्षा के समर्थन में खड़ा दिखता है तो ये संकेत है कि गुजरती पीढ़ी को नई पीढ़ी के साथ कदम ताल कितना जरूरी है।
गीत-संगीत
फिल्म में कुल 4 गीत हैं जिसमें ‘ऊँची ऊँची वादी’… और ‘हर हर महादेव’ सुनने लायक हैं। हां, एक बात और फिल्म में ‘गदर’ का एक मज़ेदार प्रकरण भी है। ये जानबूझकर किया गया या यूँ ही है, ये तो मेकर्स ही जानें, लेकिन बेहतरीन लगा।
देखें या न देखें
आज की पीढ़ी के बच्चों में सेक्स एजुकेशन जैसे गम्भीर मुद्दे को बहुत ही सरल और आसान तरीके से दिखाया है। इस फिल्म में इमोशन और कॉमेडी को इस तरह दिखाया है कि यह मनोरंजक होने के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी है। सभी माता पिता को ये फिल्म एक बार जरूर देखनी चाहिए। सिनेमा की दृष्टि से ‘ओएमजी 2’ 3.5 स्टार लायक है लेकिन मैं आधा स्टार इस टॉपिक पर फ़िल्म बनाने के लिए और देना चाहुंगा। रेटिंग- 4/5 ~गोविन्द परिहार (12.08.23)