21/09/2024

फ़िल्म समीक्षा: कल्कि 2898 एडी

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क़रीब 600 करोड़ की लागत से बनी  ‘कल्कि 2898 एडी’ भारतीय पौराणिक कथाओं में दिलचस्पी जगाने का एक नेक काम बड़ी शिद्दत से करती है। जिनका धर्म-कर्म से वास्ता नहीं रहा है, उनको ये फिल्म बिल्कुल भी समझ नहीं आएगी लेकिन अगर आपको ‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम् धर्मस्य तदात्मानाम् सृजाम्यहम्’ याद है या इसका अर्थ भी पता है तो ये फिल्म आपको दिलचस्प लगेगी। भगवान विष्णु का द्वापर में अपने श्रीकृष्ण अवतार के समय ये वादा था। महाभारत युद्ध के कुछ और सूत्र भी फिल्म ‘कल्कि 2898 एडी’ देखते समय पता होने जरूरी हैं। अर्जुन के गांडीव की शक्ति पता होना जरूरी है। एक ही मां से जन्मने के बाद भी सूतपुत्र कहलाया कर्ण अपने इस भाई से हर कौशल में बेहतर था, ये पता होना भी जरूरी है। पता होना ये भी जरूरी है कि जिन कृष्ण के सामने द्रोणाचार्य और कर्ण दोनों का छल से वध हुआ, उन्होंने ही द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को मृत्यु का दंड देकर मुक्ति नहीं दी, बल्कि जीवित रहने का श्राप देकर तिल तिल गलने के लिए अनंत काल तक धरती पर छोड़ दिया।

‘कल्कि 2898 एडी’ की कहानी

कहानी ये साल 2898 की काशी की है। दुनिया में बस यही एक शहर बचा है। बताते हैं कि काशी की रचना ही नगरों के विकास के क्रम में सबसे पहले हुई। काशी का कोतवाल, भैरव को माना जाता है। लेखक, निर्देशक नाग अश्विन के कल्कि सिनेमैटिक यूनिवर्स की पहली फिल्म ‘कल्कि 2898 एडी’ का नायक भी भैरव ही है। कहानी वर्तमान समय से क़रीब 900 साल बाद की है जैसा कि शीर्षक से स्पष्ट है।  फ़िल्म में 2 दुनिया दिखाई गई हैं। पहली दुनिया मतलब आम जनमानस वाली दुनिया जिसमें शुद्ध हवा और पानी की भारी कमी है, लोग बस किसी चमत्कार की उम्मीद में जी रहे हैं। दूसरी दुनिया है कॉम्प्लेक्स जो अमीर लोगों की हैं जहाँ उसका राजा सुप्रीम यास्किन (कमल हासन) खुद को भगवान समझता है। सुप्रीम यास्किन भयंकर अभाव में जी रहे समाज की उन लड़कियों को उठवा लेता है जो बच्चे पैदा करने में सक्षम हो। उनको अपनी एक लैब में एक वैज्ञानिक प्रयोग के जरिये गर्भधारण कराता है। उस गर्भ के सीरम से खुद को लम्बे समय तक जीवित और ताकतवर बनाता रहता है। आम जनता भगवान कल्कि के अवतार की आस में वर्षो से कष्ट सह रही हैं और कुछ साहसी लोग सुप्रीमो के लड़ाकों से अपने हक के लिए लड़ भी रहे हैं। दीपिका के गर्भ में कल्कि अवतार पल रहा है जिसे सुप्रीमो पाना चाहता है। इसमें रहस्यमयी चरित्र भैरव (प्रभास) सुप्रीमो की मदद करता है क्योंकि भैरव का कॉम्प्लेक्स की दुनिया में जाने का एकमात्र सपना है। अश्वत्थामा की भूमिका अमिताभ बच्चन ने की है जिसका काम दीपिका के गर्भ की रक्षा करना है जिसके लिए उसे प्रभास से भिड़ना पड़ता है।

‘कल्कि 2898 एडी’ की समीक्षा

लेखक और निर्देशक नाग आश्विन की कहानी काल्पनिक है लेकिन मुझे अच्छी लगी। फ़िल्म की शुरुआत अच्छी होती है लेकिन फिर भटक जाती है। प्रभास की एंट्री वाला सीन बहुत लंबा कर दिया जो बोर करने लगता है। धीरे धीरे फ़िल्म के प्रमुख पात्रों का परिचय होता है। इंटरवल से पहले कहानी रफ़्तार पकड़ लेती है जो अंत तक रोचक बनी रहती है। इंटरवल के बाद कई सवालों के जवाब मिलते हैं। अश्वत्थामा के किरदार में अमिताभ ने यादगार काम किया है। उनकी ऊँचाई को और बढाकर उन्हें इस युग से अलग दिखाया है जो बेहतरीन लगा है। अमिताभ और प्रभास के बीच फाइट सीन फ़िल्म का सबसे मजबूत पक्ष है जिसे अलग अलग तरीके से पसन्द किया जाएगा। पौराणिक चरित्र अश्वत्थामा की अद्भुत शक्ति और आधुनिक तकनीक से परिपूर्ण भैरव की ताकत जब लड़ती है तो कहानी अपने चरम पर पहुंचती है। ऐसा लगता है जैसे छल और बल की लड़ाई चल रही हो! बैकग्राउंड संगीत अच्छा है जो दृश्यों को प्रभावी बनाता है। फ़िल्म का वीएफएक्स अंर्तराष्ट्रीय स्तर का है जो निश्चित ही काबिलेतारीफ है। कई बड़े फिल्मी कलाकारों ने कैमियो किया है जो फ़िल्म को रोचक बनाते हैं। जैसे- दुलकर सलमान, मृणाल ठाकुर, विजय देवरकोंडा, निर्देशक राजामौली और राम गोपाल वर्मा।

अभिनय एवं अन्य तकनीकी पक्ष

दीपिका पादुकोण और दिशा पाटनी का काम ठीक ठाक है। कॉम्प्लेक्स दुनिया के मैनेजर टाइप चरित्र में शाश्वत चटर्जी ने कमाल का अभिनय किया है। कमल हासन का रोल छोटा है लेकिन बहुत ही असरदार है। उनके कई संवाद भी शानदार हैं। ब्रह्मानन्दम और प्रभास ने हंसाने की भी कोशिश की है। 82 वर्षीय महानायक अमिताभ के लगभग सभी दृश्य फ़िल्म की असली ताकत है। इसमें भले ही प्रभास मुख्य भूमिका में हों, लेकिन इसमें अमिताभ बच्चन ही मुख्य भूमिका में हैं। उनका अश्वत्थामा उचित रूप से गंभीर और महाकाव्य जैसा है, क्योंकि वह फिल्म के सबसे बेहतरीन सेट-पीस में से एक में बेचारे भैरव को बुरी तरह पीटते और घूंसे मारते हैं। वह फिल्म में आपको पुराने समय के बच्चन की याद दिलाते हैं, जिन्होंने ‘जहां खड़े थे, वहीं से लाइन शुरू की’।

देखें या न देखें

लेखक एवं निर्देशक नाग अश्विन का विजन बहुत बड़ा है। उन्होंने कहानी को खत्म नहीं, बल्कि परिचय कराया है। निर्देशक ने कई सवाल अभी भी छुपा रखे हैं जो इसके अगले भाग में दिखेंगे। इसके अगले भाग में महाभारत से जुड़े अन्य पात्रों को भी जोड़ सकते हैं, ऐसा क्लाइमेक्स देखकर लगा। कुल मिलाकर फ़िल्म अच्छी और पैसा वसूल लगी और अगले पार्ट का इंतज़ार रहेगा। कुछ नया हटकर देखने को मिला जिसके लिए लेखक, निर्देशक एवं अन्य फ़िल्म कलाकार बधाई के पात्र हैं। रेटिंग⭐⭐⭐ ~गोविन्द परिहार (07.07.24)
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