जन्मदिन विशेषांक: बॉलीवुड के ‘भारत कुमार’ उर्फ मनोज कुमार
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बॉलीवुड के ‘भारत कुमार’ उर्फ मनोज कुमार, हिन्दी सिनेमा के अभिनेता, निर्माता-निर्देशक, पटकथा लेखक, संगीतकार और सम्पादक थे। मनोज कुमार भारतीय सिनेमा के इतिहास के सबसे सफल और बेहतरीन अभिनेताओं में से एक थे। वो राष्ट्रभक्ति से सम्बंधित फ़िल्मों में अभिनय के लिए जाने जाते थे और इसी कारण उन्हें उपनाम भारत कुमार मिला।
भारत का रहने वाला हूँ,
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मनोज कुमार के बारे में 21 रोचक तथ्य
- मनोज कुमार का वास्तविक नाम हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी था। मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को अब पाकिस्तान के ऐबटाबाद में हुआ।
जब मनोज कुमार 10 वर्ष के थे तब विभाजन के परिणामस्वरूप उनके परिवार को पाकिस्तान से दिल्ली विस्थापित होना पड़ा।
मनोज कुमार ने फ़िल्मों में भाग्य आजमाने से पहले दिल्ली के हिन्दू कॉलेज से बीए उत्तीर्ण की।
जब मनोज कुमार युवा थे तब वो अभिनेता दिलीप कुमार, अशोक कुमार और कामिनी कौशल के प्रशंसक हुआ करते थे। अतः शबनम फ़िल्म में दिलीप कुमार के अभिनय से प्रभावित होकर अपना फ़िल्म नाम मनोज कुमार रख लिया।
9 अक्तूबर 1956 को फ़िल्मों में हीरो बनने का सपना लिए 19 साल का एक नौजवान दिल्ली से मुंबई आया।
- साल 1957 में अपनी पहली फ़िल्म फ़ैशन में 19 साल के इस युवक को 80-90 साल के भिखारी का छोटा सा रोल मिलता है।
आख़िरकर साल 1961 में मनोज कुमार को बतौर हीरो ब्रेक मिला फ़िल्म ‘कांच की गुड़िया’ से। इसके अगले ही साल विजय भट्ट की फ़िल्म ‘हरियाली और रास्ता’ ने मनोज कुमार की ज़िंदगी का रास्ता ही बदल दिया।
माला सिन्हा के साथ 1962 में आई ‘हरियाली और रास्ता’ मनोज कुमार के करियर की पहली सिल्वर जुबली हिट थी. इसके बाद मनोज कुमार ने सायरा बानो, वैजयंतीमाला, आशा पारेख के साथ कई हिट रोमांटिक फ़िल्में कीं.
जब साल 1964 में भगत सिंह पर बनी फ़िल्म ‘शहीद’ रिलीज़ हुई। यहीं से देशभक्ति की फ़िल्में करने वाले हीरो की छवि की भी शुरुआत हुई।
- इस फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फ़िल्म और राष्ट्रीय एकता के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला। इस समारोह के लिए मनोज कुमार ने भगत सिंह की माँ को भी बुलाया था। जब अभिनेता डेविड ने मंच से नेश्नल अवॉर्ड की घोषणा की तो भगत सिंह की माँ विद्यावती को बुलाया गया और पूरा हॉल तालियों से गूँज उठा था।
फ़िल्म शहीद की स्क्रीनिंग के लिए दिल्ली में ख़ुद तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री आए थे। अपने घर पर दावत के दौरान शास्त्री जी ने मनोज कुमार से कहा था कि मेरा एक नारा है जय जवान, जय किसान- मैं चाहता हूँ कि तुम इस पर कोई फ़िल्म बनाओ।
शास्त्री जी के कहने पर ही इन्होंने उपकार लिखी और उसमें महेंद्र कपूर की आवाज़ में 7 मिनट 14 सेकंड का उपकार फ़िल्म का गाना है ‘मेरे देश की धरती’।
उपकार के लिए उन्हें फ़िल्मफेयर की ओर से सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, सर्वश्रेष्ठ कहानी और सर्वश्रेष्ठ संवाद लिखने का पुरस्कार मिला और साथ ही राष्ट्रीय पुरस्कार भी।
अभिनय के साथ -साथ निर्देशन और निर्माण के ज़रिए 70 के दशक में मनोज कुमार की दूसरी पारी भी चलती रही। उन्होंने उपकार, पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान और क्रांति जैसी फ़िल्में निर्देशित की।
पहचान और सन्यासी जैसी फिल्मों में उन्होंने कॉमिक टाइमिंग भी दिखाई, जो आज भी दर्शकों को हँसा देती है।
- फिल्मों में गंभीर और भावुक सीन में उनका मौन अभिनय दर्शकों को खूब भाता था। कैमरे के सामने उनका सोचते हुए चेहरा हाथ पर रख कर झुकना — उनकी पहचान बन गई थी, जिसे आज भी लोग कॉपी करते हैं। उनका हाथ पर सिर रख कर सोचने वाला पोज़ एक सिग्नेचर स्टाइल बन गया।
- कई नए फिल्मकार और अभिनेता उन्हें गुरु और आदर्श मानते हैं, जिनमें अक्षय कुमार, अजय देवगन जैसे कलाकार भी शामिल हैं।
- मनोज कुमार को भारतीय सिनेमा और कला के क्षेत्र में उनके कार्य के लिए भारत सरकार द्वारा सन् 1992 में पद्म श्री पुरस्कार दिया गया।
- सन् 2015 में सिनेमा के क्षेत्र में सबसे बड़ा भारतीय सम्मान दादासाहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- मनोज कुमार को राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार भी मिला और सात बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- मनोज कुमार का निधन 4 अप्रैल 2025 को मुंबई में हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्जित की।