जन्मदिन विशेषांक: बॉलीवुड के ‘पहले एंग्री यंग मैन’ सुनील दत्त
1 min readसुनील दत्त / Sunil Dutt का वास्तविक नाम बलराज दत्त था। सुनील दत्त बॉलीवुड के ‘पहले एंग्री यंग मैन’ माने जाते थे। साधना, सुजाता, मुझे जीने दो, मदर इंडिया, वक्त, पड़ोसन, हमराज जैसी कई बेहतरीन फिल्मों का हिस्सा रहे चुके अभिनेता सुनील दत्त का बॉलीवुड में अहम योगदान है। फ़िल्म ‘रेलवे प्लेटफार्म’ से इंडस्ट्री में कदम रखने वाले सुनील दत्त को अगली फिल्म मदर इंडिया (Mother India) मिली थी। इस फिल्म में नरगिस (Nargis) ने उनकी मां का रोल निभाया था जो बाद में वास्तविक जीवन में इनकी पत्नी बनीं। ये फिल्म एक जबरदस्त हिट हुई थी जिसके बाद सुनील को देशभर में पहचान हासिल हो चुकी थी। दमदार आवाज और लाजवाब अभिनय से सुनील ने कई किरदारों में जान फूंकी है। इंडस्ट्री में 40 सालों तक अभिनय करने वाले सुनील दत्त फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड और साल 1968 में पद्मश्री से भी सम्मानित हैं। अभिनय के अलावा सुनील ने राजनीति में भी बड़ा योगदान दिया है। लोकसभा के सांसद और यूथ अफेयर्स एंड स्पोर्ट्स के मिनिस्टर के पद पर कार्यरत रह चुके हैं। आज उनके जन्मदिन के खास मौके पर आइए जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़ी 25 रोचक तथ्य।
सुनील दत्त के बारे में 25 रोचक तथ्य
- सुनील दत्त का जन्म 6 जून 1929 में नक्का खुर्द पंजाब में हुआ था जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। महज 5 साल की उम्र में सुनील ने अपने पिता को खो दिया था।
- सुनील जब 18 साल के हुए तो भारत-पाकिस्तान का बंटवारा शुरू हो चुका है। सभी हिंदुओं को भगाया जा रहा था और उनका बेरहमी से कत्ल किया जा रहा था। उस समय सुनील के पिता के दोस्त याकूब ने उनके परिवार को अपने घर में शरण देकर सबकी जान बचाई थी। यही कारण है कि सुनील का मुस्लिम लोगों के प्रति अच्छा रवैया था।
- अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई चले आये। मुम्बई आकर उन्होंने परिवहन सेवा के बस डिपो में चैकिंग क्लर्क के रूप में कार्य भी किया।
- सुनील ने पढ़ाई के बाद रेडियो सीलोन की हिंदी सेवा में एक रेडियो जॉकी के रूप में अपना करियर शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने फिल्मों में काम करने का मन बनाया और बॉलीवुड में आ गए।
- रेडियो की नौकरी के दौरान सुनील को एक बार नरगिस का इंटरव्यू करना था। नरगिस उस समय बेहद पॉपुलर हुआ करती थीं। इंटरव्यू के दौरान नरगिस को देखकर सुनील इतने नर्वस हो गए कि उनकी जुबान से कोई सवाल ही नहीं निकल पाया। एक्ट्रेस उनका हाल समझ गईं और उन्हें खुद सहज महसूस करवाने की कोशिश में लग गईं। एक्ट्रेस द्वारा कम्फर्टेबल किए जाने के बाद सुनील उनका इंटरव्यू ले सके। उस समय दोनों ही इस बात से अनजान थे कि आगे जाकर दोनों एक दूसरे के जीवनसाथी बनने वाले हैं।
- सुनील 1953 में ‘शिकस्त’ फिल्म के लिए दिलीप कुमार का इंटरव्यू लेने पहुंचे थे जहाँ उन पर डायरेक्टर रमेश सहगल की नजर पड़ गई थी। रमेश सुनील की पर्सनालिटी और आवाज से इतने इम्प्रेस हो गए कि उन्होंने अपनी अगली फिल्म ‘रेलवे प्लेटफार्म’ में सुनील को काम दे दिया। ये फिल्म साल 1955 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म से सुनील को नई पहचान के साथ नया नाम भी मिला था। डायरेक्टर रमेश ने ही बलराज दत्त को सुनील दत्त नाम दिया था जिससे उनके और पॉपुलर एक्टर बलराज साहनी के बीच कोई कनफ्यूजन ना हो।
- उन्होंने इसके बाद “कुंदन”, “राजधानी”, “किस्मत का खेल” और “पायल” जैसी कई छोटी फिल्मो में अभिनय किया लेकिन किसी में उन्हें सफलता नही मिली। 1957 में प्रदर्शित हुयी “मदर इंडिया” से उन्हें अभिनेता के रूप में ख़ास पहचान और लोकप्रियता मिली। इसमें नकारात्मक किरदार निभाकर वह दर्शकों के दिल में जगह बनाने में सफल रहे।
- एक दिन मदर इंडिया के सेट पर जोरदार आग लग गई और नरगिस बुरी तरह फंस गईं। इस समय सुनील ने अपनी जान खतरे में डालकर एक्ट्रेस की जान बचाई थी। सुनील पहले से ही नरगिस को चाहते थे और इस हादसे के बाद उन्होंने नरगिस के दिल में एक खास जगह बना ली थी। फिल्म रिलीज होने के अगले साल 1958 में दोनों ने शादी कर ली। दोनों के तीन बच्चे संजय दत्त (Sanjay Dutt), प्रिया दत्त और नम्रता दत्त हैं।
- सुनील दत्त और नरगिस से जुड़ा एक किस्सा ये भी है कि जब भी सुनील बाहर जाते थे तो नरगिस के लिए साड़ियां जरूर लाते थे पर नरगिस ने एक भी सुनील की दी हुई साड़ी नहीं पहनी क्योंकि सुनील की लायी हुई साड़ी उन्हें जंचती नहीं थी।
- उनकी सुपरहिट फिल्म “वक्त” 1965 में प्रदर्शित हुई थी उनके सामने इसमें बलराज साहनी, राजकुमार, शशि कपूर और रहमान जैसे नामी सितारे थे इसके बावजूद वह अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। उस वर्ष उनकी “मिलन”, “मेहरबान” और “हमराज” जैसी सुपरहिट फिल्में भी प्रदर्शित हुईं, जिसमें उनके अभिनय के नये रूप देखने को मिले। इनकी सफलता के बाद वह अभिनेता के रूप में शोहरत की बुलन्दियों पर जा पहुंचे।
- फिल्म “यादे (1964)” के साथ सुनील दत्त में फिल्म निर्देशन में भी कदम रखा था। इस पूरी फिल्म में सिर्फ एक अभिनेता की भूमिका थी जो अपने संस्मरण याद करता रहता है। इस किरदार को सुनील दत्त ने निभाया था। इस फ़िल्म का नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल है। उनकी यह फिल्म बहुत सफल नहीं रही, लेकिन भारतीय सिनेमा जगत के इतिहास में अपना नाम दर्ज करा गयी।
- सुनील दत्त ने ‘ये आग कब बुझेगी’ (1991), ‘दर्द का रिश्ता’ (1982), ‘रॉकी’ (1981), ‘डाकू और जवान’ (1978), ‘रेशमा और शेरा’ (1971) और यादें (1964) कुल 6 फ़िल्मों का निर्देशन भी किया।
- सुनील दत्त की कई बेहतरीन फिल्में हैं जो दर्शकों के जेहन में आज भी ताजा है, जिनमें साधना (1958), सुजाता (1959), मुझे जीने दो (1963), गुमराह (1963), वक़्त (1965), खानदान (1965), पड़ोसन (1967) और हमराज़ (1967) आदि हैं।
- सुनील दत्त ने 1963 में प्रदर्शित फिल्म “यह रास्ते प्यार के” के जरिये फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा। वह पंजाबी फिल्मों से भी जुड़े रहे जिनमें “मन जीते जग जीते (1973)”, “दुःख भंजन तेरा नाम (1974)” तथा “सतश्री अकाल (1977)” प्रमुख हैं।
- 1993 की “क्षत्रिय” के बाद सुनील दत्त लगभग 10 वर्षो तक फिल्मो से दूर रहे। विधु विनोद चोपड़ा के जोर देने पर उन्होंने 2007 में प्रदर्शित फिल्म “मुन्ना भाई एमबीबीएस” में अपने बेटे संजय दत्त के साथ अभिनय किया।
- सुनील दत्त ने फिल्मों में कई भूमिकायें निभाने के बाद समाज सेवा के लिए राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस के सहयोग से लोकसभा सदस्य बने।
- साल 1968 में सुनील दत्त पद्मश्री से सम्मानित किये गये। उन्हें 1982 में मुम्बई का शेरिफ नियुक्त किया गया।
- 1980 में उन्होंने अपने बेटे संजय दत्त को फिल्म “रॉकी” में लांच किया। यह एक सुपरहिट फिल्म साबित हुई लेकिन फिल्म के प्रदर्शित होने के थोड़े समय पहले ही उनकी पत्नी नरगिस का कैंसर की बीमारी की वजह से देहांत हो गया।
- पत्नी नरगिस की कैंसर से हुई मृत्यु के बाद उन्हें इस बीमारी के प्रति सामाजिक जागरूकता बढाने की प्रेरणा मिली। उन्होंने पत्नी की याद में “नरगिस दत्त फाउंडेशन” की स्थापना की जो आज भी कैंसर मरीजों का इलाज करता है। इतना ही नहीं हर साल उनकी याद में ‘नरगिस अवॉर्ड’ भी देना शुरू किया।
- सुनील अपने बच्चों से बेहद प्रेम करते थे। जब उनके बेटे संजय दत्त को ड्रग्स की लत लगी तो उन्होंने संजय की इस नशे की लत को छुड़ाने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया था। वे संजय को इलाज के लिए अमेरिका में एक नशा उन्मूलन केंद्र ले गए। जहां लंबे इलाज के बाद संजय दत्त ने ड्रग्स को अलविदा कहा।
- सुनील दत्त को फ़िल्म ‘यादें’ के लिए सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
- सुनील दत्त ने अपने 40 साल का जीवन फिल्मों को समर्पित कर दिया जिसके लिए उन्हें 1995 में ‘फ़िल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ (Filmfare Lifetime Achivement Award) से सम्मानित किया गया था।
- सुनील दत्त ने 1963 में ‘मुझे जीने दो’ और 1965 में ‘खानदान’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी हासिल किया।
- सुनील दत्त ने अपनी मौत से चंद घंटों पहले परेश रावल (Paresh Rawal) को खत लिखा था। साल 2018 में 30 मई को परेश रावल ने अपने जन्मदिन के दिन मीडिया से पत्र साझा भी किया। पत्र में लिखा था, ‘प्रिय परेश जी, 30 मई को आपका बर्थडे आने वाला है। मैं आपकी लंबी उम्र, खुशहाली की कामना करता हूँ। भगवान आप और आपके परिवार पर खुशियों की बरसात करता रहे।’
- हिंदी फिल्म के पहले एंग्री यंग मैन और राजनितिक तौर पर आदर्श नेता सुनील दत्त का 25 मई 2005 को हृदय गति रुकने के कारण बांद्रा स्थित उनके निवास स्थान पर देहांत हो गया। वह मदर इंडिया के बिरजू के रूप में या आदर्श नेता के तौर पर आज भी हमारे बीच मौजूद हैं।