जन्मदिन विशेषांक: किरदार को जीने वाले दिग्गज अभिनेता ‘फ़ारुख़ शेख़’
1 min readसिनेमा में अपने अभिनय से छाप छोड़ने वाले दिग्गज अभिनेता फ़ारुख़ शेख़ (Farooq Sheikh) का जन्म 25 मार्च, 1948 को गुजरात के अमरोली में हुआ था। फ़ारुख़ शेख़ ऐसे कलाकारों में शुमार हैं जो बड़े और असाधारण श्रेणी के फिल्मकारों की फिल्मों में एक खास किरदार के लिए पहचाने जाते हैं या फिर उसी खास किरदार के लिए बने हैं। ऐसे अभिनेता पर्दे पर केवल अभिनय नहीं करते बल्कि उस अभिनय को जीते हैं। ऐसे किरदार ही आपके जहन में इतना प्रभाव छोड़ जाते हैं कि आप उन्हें लम्बे समय तक याद रखते हैं। 2013 में फ़ारुख़ ‘ये जवानी है दीवानी’ में दिखाई दिए जिसमें उन्होंने रणबीर कपूर के पिता का किरदार बखूबी अदा किया था। फ़ारुख़ टीवी शो ‘जीना इसी का नाम है’ (Jeena Isi Ka Naam Hai) के लिए भी मशहूर हुए। इस शो में उन्होंने कई जानी मानी हस्तियों के साक्षात्कार किए। 28 दिसंबर, 2013 में फ़ारुख़ साहब ने दिल का दौरा पड़ने के कारण से इस दुनिया को अलविदा कह दिया। ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘उमराव जान’, ‘बाजार’, ‘चश्म-ए-बद्दूर’, ‘क्लब 60’ जैसी कई बेहतरीन मूवी में अपने सादगी भरे अभिनय से दिल जीतने वाले अभिनेता फ़ारुख़ शेख़ के बारे में कुछ रोचक तथ्य..!
फ़ारुख़ शेख़ के बारे में 25 रोचक तथ्य
- फ़ारुख़ शेख़ का जन्म 25 मार्च, 1948 को गुजरात के अमरोली में मुस्तफा और फरीदा शेख के परिवार में हुआ। फारुख शेख अपने पांच भाइयों में सबसे बड़े थे।
- फ़ारुख़ के पिता मुस्तफा शेख मुंबई के एक प्रतिष्ठित वकील थे और मां फरीदा शेख एक गृहिणी थी। मुंबई के सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ लॉ से उन्होंने कानून की पढ़ाई की लेकिन वकील बनने के उपरांत उन्होंने वकालत छोड़ एक्टिंग को तवज्जो देना शुरू कर दिया।
- कॉलेज में ही फ़ारुख़ शेख की मुलाकात रूपा जैन से हुई, जिनके साथ वह विवाह के बंधन में भी बंधे। फारुक़ और रूपा ने 9 वर्ष तक कोर्टशिप में रहने के उपरांत एक दूसरे से शादी करने का निर्णय कर लिया था।
- फ़ारुख़ शेख ने करियर की शुरुआत 25 साल की उम्र में फिल्म ‘गरम हवा’ से की थी। 1973 में रिलीज हुई यह फिल्म हिट हुई थी।
- अपनी पहली ही फिल्म में फारूक शेख ने मुफ्त में काम किया था। दरअसल, उन्हें एक्टिंग का ऐसा जुनून था कि फिल्म के लिए वो बिना पैसे काम करने को तैयार हो गए थे। निर्देशक एमएस सथ्यू जब यह फिल्म बना रहे थे तो उन्हें उस वक्त ऐसे एक्टर की तलाश थी, जो बिना फीस के काम करने को तैयार हो जाए। जब यह बात फारुक शेख के कानों तक पहुंची तो वो फौरन फिल्म में काम करने के लिए राजी हो गए। हालांकि, फारुक शेख को पांच साल बाद उनकी मेहनत के पैसे मिले थे।
- फ़ारुख़ शेख की ये पहली कमाई महज 750 रुपए थी। इस फिल्म के बाद उन्होंने साल 1977 में ‘शतरंज के खिलाड़ी’, 1979 में ‘नूरी’, 1981 में ‘चश्मे बद्दूर’, 1983 में ‘किसी से न कहना’ में भी काम किया था।
- फ़ारुख़ शेख की जोड़ी 80 के दशक में दीप्ती नवल के साथ हिट हुई। दोनों ने साथ में कई फिल्में कीं। इनमें चश्मे बद्दूर (1981), साथ-साथ (1982), किसी से न कहना (1983), कथा (1983), रंग-बिरंगी (1983) शामिल है। इस जोड़ी की आखिरी फिल्म ‘लिसन अमाया’ 2013 में रिलीज हुई थी।
- फ़ारुख़ शेख ने एक्ट्रेस शबाना आजमी के साथ फिल्म ‘लोरी’, ‘अंजुमन’, ‘एक पल’ और ‘तुम्हारी अमृता’ जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में अभिनय किया।
- उन्होंने रेडियो और टीवी पर कार्यक्रम किए, लेकिन सिर्फ पैसों की खातिर फ़िल्मों में काम करना उन्हें मंजूर न था। इसीलिए जिस जमाने में अभिनेता एक साथ दर्जनों फ़िल्में साइन करते थे, फ़ारुख़ शेख़ एक बार में दो से ज्यादा फ़िल्मों में काम नहीं करते थे।
- ‘नूरी’ की कामयाबी के बाद कुछ ही महीनों में उनके पास क़रीब 40 फ़िल्मों के प्रस्ताव आए लेकिन उन्होंने सारे के सारे ठुकरा दिए क्योंकि वे सब ‘नूरी’ की ही तरह थे।
- 1988 में फारुक शेख ने सलमान खान की डेब्यू फिल्म ‘बीवी हो तो ऐसी’ में उनके बड़े भाई का रोल निभाया था। हालांकि, 90 के दशक में उन्होंने फिल्में कम कर छोटे पर्दे का रुख कर लिया था।
- फ़ारुख़ शेख ने कई टीवी सीरियल्स में भी अभिनय किया है। उन टीवी सीरियल्स में ‘श्रीकांत’, ‘चमत्कार’ और ‘जी मंत्रीजी’ शामिल है।
- फ़ारुख़ शेख को मशहूर टॉक शो ‘जीना इसी का नाम है’ के लिए भी जाना जाता है। फारुक शेख ने इसे अलग ही अंदाज में होस्ट किया, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया। इस शो में फारुक शेख अलग-अलग फील्ड की मशूहर हस्तियों के इंटरव्यू लेते थे।
- फ़ारुख़ स्कूली दिनों से न केवल क्रिकेट के दीवाने थे, बल्कि अच्छे क्रिकेटर भी थे। उन दिनों भारत के विख्यात टेस्ट क्रिकेटर ‘वीनू मांकड़’ सेंट मैरी स्कूल के दो सर्वश्रेष्ठ क्रिकटरों को हर साल कोचिंग देते थे और हर बार उनमें से एक फ़ारुख़ हुआ करते थे।
- जब वह सेंट जेवियर कॉलेज में पढ़ने गए तो उनका खेल और निखरा। सुनील गावस्कर का शुमार फ़ारुख़ के अच्छे दोस्तों में होता है।
- उन्होंने समानांतर सिनेमा हो या न्यू इंडियन सिनेमा, दोनों में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने सत्यजित रे, मुजफ्फर अली, ऋषिकेश मुखर्जी और केतन मेहता जैसे निर्देशकों के साथ काम किया।
- एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में फारुख शेख ने कहा था कि उन्हें दर्शक पसंद करते थे। अपने जमाने में जब वह आम लोगों के बीच जाया करते थे, लोग मुझे जानते थे, देखकर हाथ हिलाते थे और स्माइल पास करते थे। उन्होंने कहा, ‘ मुझे कभी खून से लिखे गए खत या शादी के ऑफर नहीं मिले जैसे कि राजेश खन्ना और बाकी एक्टर्स को मिलते थे।’
- उन्होंने ईश्वर में सदा विश्वास किया। वे कहते थे कि एक शक्ति है जो ऊपर से हमें संचालित कर रही है। धर्म और जाति के नाम पर बंटवारे या भेदभाव उन्हें कभी गवारा न थे। उन्होंने सदा कहा कि गुजर जाने के बाद दुनिया में याद किए जाने की ख्वाहिश उनमें नहीं है।
- फ़ारुख़ शेख अपने किरदारों में जुझारू, मध्यमवर्गीय और मूल्यजीवी इन्सान के साथ-साथ मनुष्य की फितरत को भी अभिव्यक्त करने के लिए जाने जाते हैं।
- फ़ारुक़ की हाल की फिल्मों में सास बहू और सेंसेक्स, एक्सीडेंट ऑन हिल रोड और लाहौर जैसी फिल्में रहीं। इन फिल्मों में भी एक बार फिर उनकी परिपक्व छवि दिखी।
- फ़ारुख़ शेख का नाम कभी किसी विवाद में नहीं आया। न ही किसी को-स्टार या हीरोइन से उनका नाम जुड़ा। वह पूरी तरह से पारिवारिक इंसान थे। उनकी दो बेटियां हैं।
- फ़ारुख़ शेख ने अपने पूरे करियर में सिर्फ 50 फिल्में ही की और अपनी जबरदस्त एक्टिंग की छाप छोड़ गए।
- साल 2010 में फारुख को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का नेशनल फिल्म अवाॅर्ड मिला था। ये सम्मान उन्हें फिल्म ‘लाहौर’ में उनके बेहतरीन एक्टिंग के लिए मिला था।
- फ़ारुख़ शेख की पहली फ़िल्म ‘गरम हवा’ (1974) और अंतिम फ़िल्म ‘चिल्ड्रेन ऑफ़ वार’ (2014) रही।
- फ़ारुख़ अपने परिवार के साथ दुबई में छुट्टियां बिताने गए थे। वहां 28 दिसंबर, 2013 को कार्डिएक अरेस्ट की वजह से उनकी जान चली गई। निधन के वक्त वो महज 65 साल के थे।