दो बीघा ज़मीन / Do Bigha Zamin (1953)
शैली- ड्रामा (2 घंटे 11 मिनट) रिलीज- 16 जनवरी, 1953
निर्माता/निर्देशक- बिमल रॉय पटकथा– ऋषिकेश मुखर्जी
मूल लेखक– पॉल महेन्द्रा, सलिल चौधरी
संपादन– ऋषिकेश मुखर्जी सिनेमैटोग्राफ़ी– कमल बोस
मुख्य कलाकार- बलराज साहनी, निरुपा रॉय, जगदीप, मुराद, नाना पलसीकर, मीना कुमारी आदि
कथावस्तु
शंभू किसी कीमत पर ज़मीन बेचने को तैयार नहीं। नाराज हरनाम एक दिन में सारा कर्ज चुकाने को कहता है। शंभू घर आकर हिसाब लगाता है बेटे के साथ कि 65 रुपये देने हैं, लेकिन ये कर्ज 235 रुपये का बना दिया जाता है। शंभू के पिता गंगू ने कर्ज के बदले जमींदार के यहां मजदूरी की थी लेकिन उसे शामिल नहीं किया जाता। बेचारा शंभू कोर्ट भी जाता है जो कि हमारी फिल्मों में कोई किसान नहीं गया होगा, ऊपर से वो अनपढ़ भी तो है, कैसे लड़ेगा? लेकिन लड़ता है लेकिन हार जाता है। अदालत बोलती है पैसे चुकाओ 235 रुपये, वो भी तीन महीने में, नहीं तो घर-बार नीलाम हो जाएगा। किसान दोस्त की सलाह पर वो कलकता जाता है ताकि शहरी मजदूरी से कुछ जल्दी पैसे बना लेगा और घर लौटकर कर्ज चुका देगा, लेकिन ट्रेन में छुपकर उसका बेटा कन्हैया भी आ जाता है।
गीत-संगीत
इस फ़िल्म के सभी गीतों के बोल लिखे थे शैलेन्द्र ने और उनको स्वरबद्ध किया था सलिल चौधरी ने।
क्रमांक | गीत | गायक/गायिका |
1. | आजा री निंदिया तू आ | लता मंगेशकर |
2. | अज़ब तोरि दुनिया हो मेरे राजा | मोहम्मद रफ़ी |
3. | धरती कहे पुकार के | मन्ना डे, लता मंगेशकर, कोरस |
4. | हरियाला सावन ढोल बजाता आया | मन्ना डे, लता मंगेशकर, कोरस |
सम्मान एवं पुरस्कार
सन् 1954 में पहली बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार स्थापित किये गये थे और इस फ़िल्म को दो पुरस्कार मिले।
- 1954 – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार
- 1954 – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – बिमल रॉय
इसके अलावा इस फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिए प्रथम राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
प्रतिष्ठित विदेशी समाचार पत्रों में प्रकाशित फ़िल्म ‘दो बीघा ज़मीन’ की समीक्षाओं के कुछ खास चर्चित अंश
- ‘दो बीघा ज़मीन’ नव-यथार्थवाद का एक नमूना है। -मैनचैस्टर गार्जियन
- ‘दो बीघा ज़मीन’ इटली की लोकप्रिय फ़िल्म वायसिकल थीव्स से व्युत्पन्न प्रतीत होती है। -डेली टेलीग्राफ़
- ‘दो बीघा ज़मीन’ सर्वाधिक करुणिक, सर्वाधिक जानकारी देने वाली और सर्वाधिक यादगार फ़िल्म है। -न्यू क्रॉनिकल
- ‘दो बीघा ज़मीन’ में यथार्थवाद भावनात्मकता के साथ सम्मिश्रित होता है। -द टाइम
- ‘दो बीघा ज़मीन’ एक प्राच्य फ़िल्म है। -रीनॉल्डस
- ‘दो बीघा ज़मीन’ भारत की वायसिकल थीव्स है। -संडे टाइम्स
- ‘दो बीघा ज़मीन’ में एक बेदख़ल किसान का जीवंत चित्रण है। -फ़ायनेंशियल टाइम्स
- ‘दो बीघा ज़मीन’ आश्चर्यजनक रूप से एक वास्तविक लघु त्रासदी है। -ऑक्सफोर्ड मेल
रोचक तथ्य
- फ़िल्म का नाम रबीन्द्रनाथ ठाकुर की बांग्ला कविता ‘दुई बीघा जोमी’ से लिया गया है।
- अपने क़िरदार के साथ न्याय करने के लिये बलराज साहनी ने कोलकाता की सड़कों पर ख़ुद रिक्शा चलाया और रिक्शा चालकों के साथ बातचीत करके यह पाया कि जो क़िरदार वह निभाने जा रहे हैं वह किस हद तक सही है।
- दो बीघा ज़मीन की कहानी 40 के दशक में सलिल चौधरी ने लिखी थी। नाम था ‘रिक्शावाला’। वैसे तो सलिल संगीतकार थे लेकिन बिमल रॉय ने उनकी कहानी पर दो बीघा जमीन और परख जैसी फिल्में बनाईं।
- बॉलीवुड में ऐसा माना जाता है कि अगले हजार साल बाद भी भारत की 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची बनी तो ये फिल्म उसमें होगी।
- कहा जाता है ‘दो बीघा ज़मीन’ इटली के मशहूर फ़िल्मकार विटोरियो डीसिका की चर्चित फ़िल्म ‘बायसिकल थीव्स’ से प्रेरित थी। इस संदर्भ में जब बिमल रॉय से एक बार पूछा गया, तो उनका सारगर्भित जवाब था- शायद कथा लेखक से, ना कि निर्देशक से।