01/04/2025

फ़िल्म समीक्षा: छावा

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हिन्दी सिनेमा अब बदलाव की तरफ बढ़ रहा है। कोरोनाकाल के बाद दर्शकों का स्वाद बदला है इसलिए फ़िल्म निर्माता भी उसी तरह की कोशिश कर रहे हैं। मराठा साम्राज्य के छत्रपति महाराज शिवाजी के पुत्र सम्भाजी के अद्भुत शौर्य को दिखाती ये फ़िल्म हर देश प्रेमी को देखनी चाहिए। कैसे मुग़लों ने हिन्दू संस्कृति को नष्ट करना चाहा लेकिन कर नहीं पाए। निर्माता वहीं है मैडोक फ़िल्म्स वाले दिनेश विजन और निर्देशक है लक्ष्मण उतेकर।

छावा की कहानी

छावा एक बहादुर नायक की कहानी है। छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु 1680 में होती है। मुगल बादशाह औरंगजेब (अक्षय खन्ना) और उसके दरबार के सदस्य राहत महसूस करते हैं कि उनका सबसे बड़ा दुश्मन अब नहीं रहा। अब वे दक्कन क्षेत्र पर कब्ज़ा करने का सपना देखते हैं। उन्हें अपने जीवन का सबसे बड़ा झटका तब लगता है जब छत्रपति शिवाजी महाराज के बहादुर बेटे छत्रपति सम्भाजी महाराज (विक्की कौशल) बुरहानपुर पर हमला करते हैं और खजाना लूट लेते हैं। औरंगजेब बदला लेने की कसम खाता है। छत्रपति सम्भाजी महाराज जानते हैं कि औरंगजेब जवाबी कार्रवाई करेगा और इसलिए, व्यवस्था करता है लेकिन उन्हें नहीं पता कि परिवार के भीतर की राजनीति संभाजी के लिए धोखा करती है।

छावा की समीक्षा

फ़िल्म की कहानी मराठी लेखक शिवाजी सावंत की पुस्तक ‘छावा’ से लिखी गयी है। छत्रपति शिवाजी के बाद उनके पुत्र सम्भाजी ने कैसे उनकी विरासत सम्भाली और कैसे शिवाजी की सोच को मराठा संस्कृति में जिंदा रखा? यही इस फ़िल्म में दिखाया गया है। मुग़ल बादशाह औरंगजेब की विशाल सेना के सामने मराठा कैसे अपना साहस दिखाता है, इसे रोचक ढंग से दिखाया गया है।
फ़िल्म अच्छी शुरुआत लेती है और बीच में थोड़ी नीरस हो जाती है लेकिन अंत में बहुत ही शानदार तरीके से ख़त्म होती है। बैकग्राउंड म्यूजिक और सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। क्लाइमेक्स बेहतरीन है, एकदम सुन्न कर देता है। विक्की कौशल का अभिनय एक बार फिर से टॉप पर है। उरी, सरदार उधम, सैम बहादुर के बाद फिर से छा जाते हैं। औरंगजेब की भूमिका में अक्षय खन्ना बेहतरीन लगे हैं। उनका रोल छोटा है लेकिन दमदार है। सम्भाजी की पत्नी के रूप में रश्मिका मंदाना अच्छी लगी हैं जबकि दिव्या दत्ता सम्भाजी की सौतेली माँ सोयराबाई बनी है जिन्होंने बेहतरीन अभिनय किया है। डायना पेंटी औरंगजेब की बेटी जीनत उन निशा बनी हैं। आशुतोष राणा भी अहम किरदार में है। वे सम्भाजी के मामा हम्मीरराव बने हैं। ए आर रहमान का संगीत ठीक-ठाक है। ‘आए रे तूफ़ान’ बेहतरीन है जबकि ‘जाने तू’ और ‘ज़िंदा रहे’ भावपूर्ण हैं। हालांकि, ए आर रहमान का बैकग्राउंड स्कोर बेहतरीन है।
फ़िल्म के अंतिम 20 मिनट रोंगटे खड़े करने वाले हैं। सम्भाजी और उनके मित्र कवि कलश (विनीत सिंह) के बीच काव्य पाठ बेहतरीन लगता है। जिस तरह क्लाइमेक्स में औरंगजेब की जीत के बावजूद बेबसी दिखाई है, हमारे गौरवपूर्ण इतिहास की असली सच्चाई लगती है जिस पर हमें गर्व करना चाहिए। औरंगजेब की बेटी जीनत के मुंह से निकला ये संवाद दिमाग में रह जाता है-
सम्भा अपनी मौत का जश्न मनाकर चला गया।
और हमें छोड़ गया अपनी ज़िंदगी का मातम बनाने।।

देखें या न देखें

यदि आप स्वराज प्रेमी हो तो अवश्य देखनी चाहिए, इतिहास या सिने प्रेमी हो तो भी देखनी चाहिए। पैसा और समय बर्बाद नहीं होगा। बॉक्स ऑफिस पर फिल्म कमाल कर सकती है।  ⭐⭐⭐1/2 ~गोविन्द परिहार  (15.02.25)
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