22/11/2024

फ़िल्म समीक्षा: द वैक्सीन वार

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कोरोना काल का प्रभाव किस तरह से विश्वव्यापी रहा है। हम में से ऐसा कोई नहीं, जो इस महामारी की आग में झुलसा न हो। किसी ने अपनों को खोया, तो कोई अपनी रोजी-रोटी से महरूम हुआ, तो कोई अपनी जमीन से जुदा हो गया। इस पर अब तक अनुभव सिन्हा (भीड़), मधुर भंडारकर (इंडिया लॉकडाउन), प्रतीक मोइत्रो (माइनस 31 :द नागपुर फाइल्स) जैसी फिल्में बना चुके हैं। इन फिल्‍मों ने कोरोना वायरस और लॉकडाउन के हाहाकारी रूप को पर्दे पर दर्शाने का प्रयास किया। विवेक अग्निहोत्री की ‘The Vaccine War’ भी इसी श्रृंखला की फिल्म साबित होती है, मगर उनकी फिल्म में नयापन ये है कि यह भारतीय साइंटिस्ट्स द्वारा देश का अपना वैक्सीन बनाने के सफर को बयान करती है।

‘द वैक्सीन वार’ की कहानी

फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’, उन भारतीय वैज्ञानिकों के इर्द -गिर्द घूमती कहानी है जिन्होंने ‘कोविड-19’ के लिए सबसे प्रभावी वैक्सीन बनाई है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे इस वैक्सीन को बनाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों और महिलाओं की टीम ने अपनी जान जोखिम में डाली।फिल्म इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के डायरेक्टर जनरल रहे डॉ बलराम भार्गव की किताब ‘गोइंग वायरल’ पर आधारित है। फिल्म में बलराम भार्गव का किरदार ही प्रमुख किरदार है। कुछ भारतीय डॉक्टर और वैज्ञानिक हैं, जो हमारे देश में ही वैक्सीन बना रहे हैं उनके सामने कई तरह की कठिनाईयां आती हैं। उनसे कहा जाता है कि वो वैक्सीन नहीं बना पाएंगे, लेकिन उनका प्रण है कि प्रभावी वैक्सीन बनाएंगे, वो भी कम समय में। न्यूज चैनल/पोर्टल डेलीवायर की साइंस एडिटर रोहिणी सिंह भारतीय वैक्सीन के लिए नकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश करती हैं।  बेसिकली रोहिणी को मीडिया के एक ऐसे धड़े के रूप में दिखाया गया है, जो सरकार के खिलाफ है और यहां वो सरकार के नहीं, कायदे से भारत देश के खिलाफ है।

‘द वैक्सीन वार’ की समीक्षा

किसी फिल्म को अच्छी फिल्म बनाता है, उसका विलेन। इस पिक्चर में तीन विलेन हैं एक तो स्वयं कोरोना वायरस, दूसरा विदेशी ताकतें और तीसरा मीडिया। मीडिया की नुमाइंदगी कर रही हैं रोहिणी सिंह। वही फिल्म की मुख्य विलेन हैं। फिल्म में दिखाया गया है, वो विदेशी ताकतों के कहने पर सबकुछ करती हैं चूंकि ये सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्म है, ऐसे में उनका एक मजबूत मोटिव पेश किया जात तो और अच्छा रहता। फिल्म की सबसे अच्छी बात है कि आप इसमें दिखाए गए फैक्ट्स को झुटला नहीं सकते, फिल्म देखते जाइए, साथ-साथ गूगल करते जाइए। सब कुछ इंटरनेट पर उपलब्ध मिलेगा। फिल्म में सच्चे फैक्ट्स दिखाए गए हैं। फिल्म में नाना पाटेकर का किरदार पत्रकार से कहता है, “आपके फैक्ट्स फैक्ट्स नहीं हैं, सेलेक्टिव फैक्ट्स हैं” कई लोग विवेक अग्निहोत्री पर भी ये आरोप लगा सकते हैं लेकिन उन्होंने फेक कुछ नहीं दिखाया है, बस एक्सट्रीम दिखा दिया है।

फिल्म इमोशंस का इस्तेमाल करने की अच्छी कोशिश की है। जैसे एक जगह जब बलराम भार्गव का किरदार चॉकलेट देता है या फिर जब फ्रस्ट्रेटेड प्रिया को एक बच्चा गुलाब देता है। फिल्म ऐसे कई प्यारे क्षण पैदा करती है। फिल्म का क्लाइमैक्स थोड़ा लंबा है लेकिन जरूरी था। इस फिल्म की सबसे बड़ी कमी है इसके डायलॉग जो बहुत ज्यादा टेक्निकल रखे हैं जो शायद निर्देशक की मजबूरी भी रही होगी क्योंकि फिल्म का विषय ही ऐसा है। कम पढे लिखे या अशिक्षित लोगों को मेडिकल भाषा के शब्द समझ में नहीं आएंगे।

निर्देशन

‘द कश्मीर फाइल्स’ बनाकर चर्चा में आए निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने इस बार प्रोपेन्डा फैलाने से बचने की अच्छी कोशिश की है। फिल्म की कहानी में जब पूरे देश में लॉकडाउन लगता है तो वहाँ संस्कृत के कुछ मंत्रों का इस्तेमाल मुझे बेहतरीन लगा। फिल्म में किसी भी नेता को नहीं दिखाना, प्रधानमंत्री या सरकार को सीधे तौर पर कहीं प्रशंसा नहीं की है। सिर्फ भारत के लोगों, वैज्ञानिकों और मीडिया के साथ सिर्फ सही तथ्यों को ही रखा है। इसके लिए निर्देशक बधाई के पात्र हैं। हो सकता है इस बार इन्हें कुछ फिल्मी अवार्ड भी मिल जाएं क्योंकि पिछली बार द कश्मीर फाइल्स ब्लॉकबस्टर होने के बावजूद विवेक अग्निहोत्री को कहीं से भी प्रशंसा नहीं मिली थी।

अभिनय

बलराम भार्गव के रूप में नाना पाटेकर की दमदार वापसी हुई है। उनके अभिनय की विशिष्ट शैली और पॉज लेकर डायलॉग बोलने वाला अंदाज पर्दे पर मजेदार लगता है। फिल्म में महिला साइंटिस्ट्स के रूप में कई समर्थ अभिनेत्रियों का जलवा देखने को मिलता है, जिसमें पल्लवी जोशी अपने मजबूत अंदाज में नजर आती हैं। संवाद अदायगी और इमोशनल सीन्स में वे दिल जीत लेती हैं। वैज्ञानिकों की टीम में शामिल सप्तमी गौड़ा और निवेदिता बसु ने बहुत उम्दा काम किया है। अनुपम खेर जैसे काबिल अभिनेता को ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं दिया गया है। सहयोगी कास्ट भी दमदार है। एंटी गवर्नमेंट जर्नलिस्ट के रूप में राइमा सेन ने सशक्त अभिनय किया है।

देखें या न देखें

यदि आप भारतीय हैं और आपने कोरोना काल झेला है तो देशभक्ति से भरपूर ये फ़िल्म आपको ज़रूर देखनी चाहिए क्योंकि जिस वैक्सीन को भारत के अलावा 13 देशों में मान्यता मिली उसे हमारे डॉक्टर्स और वैज्ञानिकों की टीम ने किन हालातों का सामना करके बनाया उसे अच्छे ढंग से दिखाया गया है।  रेटिंग- 4/5 ~गोविन्द परिहार (02.10.23) 

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