जाने भी दो यारो / Jaane Bhi Do Yaaro (1983)
शैली- कॉमेडी–क्राइम–ड्रामा (2 घंटे 12 मिनट) रिलीज- 12 अगस्त, 1983
निर्माता- राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) निर्देशक- कुंदन शाह
लेखक- रंजीत कपूर, सतीश कौशिक पटकथा- सुधीर मिश्रा, कुंदन शाह
संगीतकार- वनराज भाटिया
संपादन– रेनू सलूजा सिनेमैटोग्राफ़ी– बिनोद प्रधान
मुख्य कलाकार
- नसीरुद्दीन शाह – विनोद (फोटोग्राफर)
- रवि वासवानी – सुधीर (फोटोग्राफर)
- भक्ति भर्वे – शोभा सेन (‘खबरदार’ मैगजीन की संपादक)
- पंकज कपूर – तरनेजा (भृष्ट ठेकेदार)
- ओम पुरी – आहूजा (भृष्ट ठेकेदार)
- सतीश शाह – डी मेलो (नगर आयुक्त)
- सतीश कौशिक – अशोक (तरनेजा का असिस्टेंट)
- नीना गुप्ता – प्रिया (तरनेजा की सचिव)
कथावस्तु
पेशेवर फोटोग्राफर विनोद (नसीरुद्दीन शाह) और सुधीर (रवि वासवानी) दोस्त हैं जो मुंबई में एक फोटो स्टूडियो खोलते हैं लेकिन उनकी स्टूडियो चलता नहीं है। एक बुरी शुरुआत के बाद, उनको “खबरदार” मैगजीन की संपादक शोभा सेन (भक्ति भर्वे) द्वारा कुछ काम दिया जाता है। यह प्रकाशन शहर के अमीर और प्रसिद्ध लोगों के अपवादात्मक जीवन को उजागर करता है। वे दोनों शोभा सेन के साथ मिलकर एक बेईमान बिल्डर तरनेजा (पंकज कपूर), और भ्रष्ट नगर निगम आयुक्त डी मेलो (सतीश शाह) के बीच चल रहे भ्रष्टाचार को प्रकाश में लाने के लिए एक कहानी पर काम शुरू कर देते हैं। अपनी जांच के दौरान उनको पता लगता है कि एक और बिल्डर आहूजा (ओम पुरी) भी इस घोटाले में शामिल है। अपनी कहानी पर काम करने के दौरान सुधीर और विनोद एक फोटोग्राफी प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं जिसकी पुरस्कार राशि रु 5000 है और सारे शहर में तस्वीरें खींचते हैं। फ़ोटो धुलाई के दौरान एक फ़ोटो में वे एक आदमी को किसी को गोली मारते हुए देखते हैं। यहाँ से आगे का घटनाक्रम बहुत ही हास्यप्रद तरीके से दिखाया गया है जो इस फिल्म की यूएसपी है।
गीत-संगीत
इस फिल्म में कोई गीत नहीं है बस बैकग्राउंड म्यूजिक है जो वनराज भाटिया ने दिया है।
सम्मान एवं पुरस्कार
- राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1984)– इंदिरा गांधी अवार्ड सर्वश्रेष्ठ डेब्यू निर्देशक – कुंदन शाह
- फ़िल्मफेयर पुरस्कार (1985)– सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार – रवि वासवानी
रोचक तथ्य
- कुंदन शाह ने एफटीआईआई और एनएसडी के कलाकारों के संग मिलकर बेहद कम बजट (एनएफडीसी के सहयोग से) सात लाख रुपए में यह फिल्म बनाई थी। साथ ही परदे के पीछे रंजीत कपूर, पवन मल्होत्रा, सुधीर मिश्रा, विनोद चोपड़ा (उनकी फिल्म में भी छोटी भूमिका थी), रेणु सलूजा (संपादक) की भूमिका कम महत्वपूर्ण नहीं थी. यह फिल्म एक बेहतरीन ‘टीम वर्क’ और काम के प्रति लगन, समर्पण की भी मिसाल है. असल में, यारों की यारी ने ‘जाने भी दो यारो’ को ‘कल्ट क्लासिक’ बनाया है।
- फिल्म निर्माण के दौरान और रिलीज के बाद कई लोगों का कहना था कि फिल्म में बिना सिर पैर की कॉमेडी है। सीन्स में लॉजिक नहीं है। मगर कुंदन शाह को अपनी फिल्म पर यकीन था। यह यकीन कामयाब रहा और इन्हीं लॉजिक विहीन दृश्यों ने दर्शकों को खूब हंसाया। कुंदन शाह कहते हैं कि अगर वह दिमाग लगाते तो कभी भी फिल्म का आइकॉनिक महाभारत दृश्य फिल्म में नहीं होता। मैं इस फिल्म को बनाते हुए बिल्कुल अनजान और अजनबी था। इसलिए मैं यह बना पाया। मैंने इस फिल्म के बाद दिमाग लगाया लेकिन कभी इतनी कामयाब कृति नहीं बना सका।
- इसके अलावा निर्देशक कुंदन शाह ने 1994 में शाहरुख खान के साथ ‘कभी हाँ कभी ना’ जैसी कल्ट रोमांटिक फिल्म भी बनाई।