फ़िल्म समीक्षा: 12th फेल
1 min readऐसे दौर में जबकि बॉलीवुड अपनी फिल्मों का हीरो नए सिरे से गढ़ने के लिए साउथ की ‘पुष्पा’ और ‘केजीएफ’ जैसी फिल्मों को आदर्श मान रहा है, निर्माता-निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने बताया है कि कहीं जाने की जरूरत नहीं। हमारे हीरो आस-पास ही हैं। 12वीं फेल एक बायोपिक फिल्म है, आईपीएस मनोज कुमार शर्मा की कहानी। जो उनकी इसी नाम की बेस्टसेलर किताब पर आधारित है जिसमें, अपने बीहड़ों में पलने वाले बागियों के लिए चर्चित चंबल इलाके का 12वीं में फेल होने वाला लड़का, दिल्ली आकर यूपीएससी की परीक्षा पास करता है और पुलिस अफसर बनता है। विधु विनोद चोपड़ा की यह फिल्म उन्हीं के बैनर तले पहले बन चुकी ‘मुन्नाभाई सीरीज और ‘3 इडियट्स’ जैसी फिल्मों की तरह कहीं न कहीं देश में शिक्षा, उसे लेकर लोगों की सोच और व्यवस्था की बात करती है।
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’12th फेल’ की कहानी
कहानी का आरम्भ चंबल के एक गाँव में रहने वाले मनोज (विक्रांत मैसी) द्वारा 12वीं की परीक्षा पास करने को लेकर नकल के लिए पर्चियां बनाने से होता है। स्थानीय विधायक द्वारा संचालित स्कूल में पढ़ रहे मनोज को यकीन होता है कि नकल के दम पर वह पास हो जाएगा, लेकिन अचानक से डीएसपी दुष्यंत सिंह (प्रियांशु चटर्जी) स्कूल पहुंच कर प्रिंसिपल को गिरफ्तार कर ले जाते हैं। उधर, उसके ईमानदार पिता को सरकारी नौकरी से निलम्बित कर दिया जाता है। वह अपने मामले को चुनौती देने अदालत जाते हैं। इस दौरान घर की जिम्मेदारी मनोज और उसका भाई संभालते हैं। घटनाक्रम मोड़ लेते हैं, मनोज भी दुष्यंत की तरह ईमानदार पुलिस आफिसर बनना चाहता है। बीए पास करने के बाद उसके इस निर्णय का उसकी दादी (सरिता जोशी) समर्थन करती है। ग्वालियर होते हुए मनोज दिल्ली के मुखर्जी नजर पहुंचता है। जहां शुरू होता है उसका असली संघर्ष।
’12th फेल’ की समीक्षा
‘मिशन रानीगंज’ के बाद इस साल बॉलीवुड की एक और बेहतरीन फ़िल्म। फिल्म के कई सीन इतने अच्छे हैं कि बार बार देखने को मन करेगा। विक्रांत मेसी ने जो किरदार निभाया है उसमें कहीं-कहीं ‘सत्यकाम’ वाले धर्मेन्द्र की याद आई जो ईमानदारी के साथ अपनी खुद्दारी से समझौता नहीं कर सकता चाहे कुछ भी हो जाए। फिल्म का क्लाइमेक्स में इंटरव्यू वाला सीन ‘3 इडियट्स’ से प्रेरित लगता है क्योंकि मनोज का किरदार भी उसी राजू रस्तोगी वाला ईमानदारी वाला एटीट्यूड दिखाता है। जो सही भी था क्योंकि ईमानदारी उसका सबसे ताकतवर पहलू था। फिल्म में कई सीन हँसाते हैं तो कई रुलाते भी हैं। फिल्म की लीड एक्ट्रेस मेधा शंकर की कास्टिंग बहुत सटीक है क्योंकि मनोज की लव इन्टरेस्ट और बाद में पत्नी बनी श्रद्धा जोशी (जो फिलहाल महाराष्ट्र मे आईआरएस अधिकारी हैं) से बहुत ज्यादा मिलता जुलता है। फिल्म में मेधा शंकर ने काम भी बहुत ही बेहतरीन किया है।
निर्देशन
फिल्म की कहानी यूं तो सरल नजर आती है, लेकिन इसे सहजता से संभालना आसान नहीं था। विधु विनोद चोपड़ा करीब ढाई घंटे की फिल्म में बांधे रहते हैं। रोचक बात यह है कि फिल्म उनकी इससे पहले की फिल्मों से पूरी तरह से अलग है। यहां न अंडरवर्ल्ड है और ही झीलों में चलती नावों जैसी प्रेम कहानी। 12वीं फेल ठोस हकीकत की जमीन पर खड़ी है। ऐसे समय जबकि बॉलीवुड बड़े-भव्य सैट, वीएफएक्स, फंतासी और बाहुबली हीरो वाली कहानियां ढूंढ रहा है, विधु विनोद चोपड़ा चुपके से बता जाते हैं कि हमें कैसी फिल्मों की जरूरत है? विधु विनोद चोपड़ा ने इस फिल्म को बनाने में चार साल का लंबा वक्त लगा। उनकी राइटिंग और डायरेक्शन दोनों तारीफ के लायक है। विधु विनोद चोपड़ा की ये फिल्म आपको एक ऐसे इंस्पायरिंग और इमोशनल जर्नी पर लेकर जाती है जहां शुरू से अंत तक कई सीन्स में आंखें नम हो जाएंगी। कई जगह आप तालियां बजाने पर मजबूर हो जाएंगे।
अभिनय
मनोज शर्मा के किरदार में विक्रांत मैसी ने खुद को पूरी तरह से झोंक दिया है। चंबल के नकलची लड़के से लेकर आईपीएस बनने के सफर में आए जद्दोजहद को विक्रांत ने बहुत ही एफर्टलेस अंदाज में निभाया है,इससे उनका किरदार लंबे समय तक याद किया जाएगा। विक्रांत मैसी ने बहुत शिद्दत से परदे पर उतारा है। उन्हें अपनी प्रतिभा का नया आयाम दिखाने का अवसर मिला है, जिसमें वह खरे उतरे हैं। यह उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ अभिनय कहा जा सकता है। फिल्म की कास्टिंग इसका सबसे मजबूत पक्ष है। फिल्म में मनोज शर्मा की गर्लफ्रेंड श्रद्धा का किरदार निभाने वाली मेधा शंकर ने अपना बेस्ट देने की कोशिश की है। विकास दिव्यकीर्ति का कैमियो एकदम नेचुरल लगता है। अंशुमान पुष्कर, अनंत जोशी, हरीश खन्ना,गीता अग्रवाल शर्मा और सरिता जोशी ने भी बहुत अच्छा काम किया है।
अन्य तकनीकी पक्ष
जिस तरह की फिल्म की स्टोरीलाइन है, अगर गाने न भी हों को कोई फर्क नहीं पड़ता। इसमें स्वानंद किरकिरे और शांतनु मोइत्रा के कुछ गाने जरूर हैं, जो वैसे तो फिल्म का हिस्सा ही लगते हैं लेकिन अलग से सुनने लायक नहीं हैं। सिनेमेटोग्राफी कमाल की है। फिल्म में चंबल के गांव और दिल्ली के मुखर्जी नगर की आत्मा को जिस अंदाज में पर्दे पर उकेरा है, वो कमाल है।
देखें या न देखें
कभी ना हार मानने की प्रेरणा देने वाली ये इमोशनल जर्नी आपके अंदर भावनाओं का एक ज्वर पैदा कर देगी। विधु विनोद चोपड़ा की खूबसूरत स्टोरी टेलिंग, कमाल की स्टोरी लाइन और उम्दा एक्टिंग से सजी एक प्रेरक फिल्म देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आपके लिए परफेक्ट है। मुझे ये फिल्म अच्छी लगी। प्रतियोगी पारिक्षाओं की तैयारी कर रहे हर विद्यार्थी को अवश्य देखनी चाहिए। रेटिंग– 4*/5 ~गोविन्द परिहार (31.10.23)