फ़िल्म समीक्षा: खेल खेल में
1 min readवाकई मोबाइल में ऐसे-ऐसे राज छिपे होते हैं, जो फाश हो जाएं, तो मोबाइल के मालिक की जिंदगी में तूफान आ जाए। कुछ इसी तर्ज पर ‘दूल्हा मिल गया’, ‘हैप्पी भाग जाएगी’, ‘पति पत्नी और वो’ जैसी हल्की-फुल्की कॉमिडी फिल्मों के लेखक-निर्देशक मुदस्सर अजीज ‘खेल खेल में’ के साथ प्रस्तुत हुए हैं। मुदस्सर की यह फिल्म इटैलियन फिल्म ‘परफेक्ट स्ट्रेंजर्स’ की रीमेक है।
‘खेल खेल में’ की कहानी
कहानी 4 दोस्तों की है जिसमें 3 अपनी पत्नी के साथ एक शादी में आये हैं। चौथा (फरदीन) अपनी गर्लफ्रैंड लाने वाला था लेकिन लाया नहीं। सबका एक अतीत है जिसे फ्लैशबैक में दिखाया जाता है सिवाय लीड कैरेक्टर ऋषभ (अक्षय) के, जो एक प्लास्टिक सर्जन है। ऋषभ की दूसरी पत्नी वर्तिका (वाणी कपूर) की छोटी बहिन की शादी है जहाँ होटल में सब इक्कट्ठे हुए हैं। ऋषभ और वर्तिका की शादी टूटने के कगार पर है इसलिए वर्तिका सबको एक खेल खेलने को कहती है जिसमें सभी सातों लोगों को अपने मोबाइल पर आने वाले सभी मैसेज या कॉल को सबको दिखाना या सुनाना पड़ता है। इस खेल से सबके झूठे चिठ्ठे खुलने लगते हैं तो कहानी बहुत रोचक हो जाती है जो कभी हंसाती है तो कभी गम्भीर कर देती है।
‘खेल खेल में’ की समीक्षा
इससे पहले ‘पति पत्नी और वो’ बनाने वाले निर्देशक मुदस्सर अजीज का निर्देशन अच्छा है। कहानी रोचक है। हालाँकि ये फ़िल्म परफेक्ट स्ट्रेंजर्स की रीमेक है जिसे क़रीब 25 भाषाओं में पहले ही रीमेक किया जा चुका है लेकिन हिंदी में पहली बार हुआ है। निर्देशक ने पूरी फ़िल्म अक्षय कुमार के कंधों पर चलाई है। फ़िल्म मनोरंजक है लेकिन कुछ कमियां भी हैं। जैसे- फ़िल्म जिस वर्ग को ध्यान में रखकर बनाई है वो वर्ग बहुत कम है भारत में। इतनी हाई क्लास सोसायटी की फ़िल्म को ओटीटी पर आना चाहिए था! स्त्री 2 का ट्रेलर देखने के बाद इसके मेकर्स का इस फ़िल्म को सिनेमा हॉल मे रिलीज करना एक घाटे का सौदा है। सिनेमाहॉल में ही रिलीज़ करनी थी तो किसी भी ऐसे शुक्रवार को आ जाते जब कोई सीधे टक्कर में न हो। आपकी फ़िल्म का विषय और ट्रीटमेंट छोटे शहर, कस्बों के लायक है ही नहीं तो सिनेमाहॉल में रिलीज़ क्यों? समझ नहीं आया। फ़िल्म में निर्देशक ने 2 ऐसे संवेदनशील विषयों को छुआ है जिसे भारत की अधिकांश जनता अभी तो स्वीकार नहीं करेगी। फ़िल्म का सबसे अच्छा गाना ‘हॉली हॉली’ क्रेडिट में निकाल दिया है। पटकथा में कई जगह झोल है। संवाद लेखन और बेहतर हो सकता था।
अभिनय एवं अन्य तकनीकी पक्ष
अभिनय में अक्षय कुमार एकदम फॉर्म में नजर आए। उन्होंने हर गेंद को बाउंड्री पार भेजा है। ऐसा रोल वे बिना किसी तैयारी के कर सकते हैं क्योंकि उनके जैसी कॉमिक टाइमिंग बहुत कम एक्टर के पास है। वाणी कपूर बहुत सुंदर लगीं हैं। फरदीन खान और एमि विर्क ने अच्छा काम किया है। तापसी ने ओवरएक्टिंग की है और आदित्य सील और प्रज्ञा जायसवाल ने ठीक ठाक काम किया है। चित्रांगदा सिंह का कैमियो फ़िल्म का सबसे मज़ेदार पक्ष है। हॉली हॉली गाने को छोड़कर सब औसत लगे।
देखें या न देखें
अक्षय कुमार की गरम मसाला वाली कॉमिक टाइमिंग देखनी है तो अवश्य देखें। फ़िल्म मनोरंजन करती है एक बार देखी जा सकती है। ~गोविन्द परिहार (16.08.24)
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