निर्देशक श्रीराम राघवन की इस (मैरी क्रिसमस) फ़िल्म का बेसब्री से इंतजार था। ये पिछले साल ‘डंकी’ के साथ रिलीज होने वाली थी लेकिन किसी वजह से अब नये साल में 12 जनवरी को रिलीज़ हुई। डंकी में तो निर्देशक राजू हिरानी अपना जादू बरकरार नहीं रख पाए लेकिन श्रीराम राघवन ने पूरी तरह रखा है। सस्पेंस और थ्रिलर फ़िल्मों के चैंपियन निर्देशक श्रीराम राघवन का नाम हिन्दी सिनेमा में बहुत ऊँचा स्थान रखता है। अक्सर हिन्दी फिल्मों के लिए कहा जाता है- दिमाग़ घर पर रखकर जाएं लेकिन इनकी फ़िल्मों के लिए आप ऐसा नही कह सकते। यही इनकी विशेषता है। इनकी पिछली फ़िल्में हैं- अंधाधुन, बदलापुर, जॉनी गद्दार। इनकी फिल्मों की एक सबसे खास बात जो लगती है कि अक्सर फ़िल्म का मुख्य सस्पेंस दर्शक को पता होता है लेकिन कहानी के चरित्रों को नही होता। कहानी से दर्शक जुड़ जाता है फिर इसका एक अलग ही मज़ा आता है।
मैरी क्रिसमस की कहानी
फिल्म ‘मेरी क्रिसमस’ फ्रेडरिक दा के लिखे फ्रेंच उपन्यास ला मोंटे चार्ज की कहानी पर आधारित है। फिल्म की कहानी एक ऐसी ही अंधेरी काली रात के बारे में हैं, जब दो अजनबी मारिया (कटरीना कैफ) और अल्बर्ट (विजय सेतुपति) एक दूसरे से टकराते हैं। ये भी इत्तेफाक ही है कि मारिया और अल्बर्ट की ये काली रात दुनिया के लिए साल की सबसे चमकदार क्रिसमस की रात है, जब सारा शहर जगमगा रहा है। ये शहर वो मुंबई है, जब उसे बॉम्बे कहा जाता था। अल्बर्ट सात साल बाद अपने घर लौटा है लेकिन क्रिसमस की रात अपनी गुजरी हुई मां की याद में दुखी होने के बजाय शहर घूमने निकलता है। रेस्त्रां में अपनी बेटी और उसके टेडी बियर के साथ अकेली बैठी मारिया उससे टकराती है। हालात ऐसे बनते हैं कि अल्बर्ट उनका हमसाया बन जाता है। मारिया अपनी शादीशुदा जिंदगी में नाखुश है, तो अल्बर्ट के अतीत के भी कुछ स्याह राज हैं। रात जवां होने के साथ-साथ अल्बर्ट और मारिया की नजदीकियां भी बढ़ती हैं, दोनों एक दूसरे के हमराज बनते हैं, लेकिन तभी एक मर्डर की मिस्ट्री उनकी केमिस्ट्री पर ब्रेक लगा देती है।
मैरी क्रिसमस की समीक्षा
कहने को फिल्म ‘मेरी क्रिसमस’ दो घंटे 14 मिनट की एक सस्पेंस थ्रिलर है लेकिन एक निर्जीव टेडी बीयर को लेकर भी अल्बर्ट के संवाद फिल्म में ठहाके लगाने के भी मौके तलाश लेती है। फिल्म के वनलाइनर बहुत शानदार लिखे गए हैं। पूरी फिल्म एक रात की कहानी है लिहाजा दर्शकों को ये आखिर तक बांधे रखती है। इसमें इसकी पटकथा और संपादन दोनों की जीत है। फिल्म का हाईलाइट आखिरी का आधा घंटा है। ऐसे क्लाइमैक्स का उम्मीद आप बिल्कुल नहीं करते। निर्देशन की बात करें, तो श्रीराम की यूनिक छाप हर फ्रेम में मौजूद है। डार्क थीम, पुरानी फिल्मों के रेफरेंस (फिल्म उन्हाेंने निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत को समर्पित की है) कलर्स, छोटी-छोटी डीटेलिंग देखने लायक है। उस पर डैनियल बी जॉर्ज का बैकग्राउंड स्कोर और मधु नीलकंदन का कैमरा नॉस्टैल्जिया के साथ-साथ जरूरी सस्पेंस बनाए रखता है। प्रीतम के गाने मौजूं हैं, पर याद नहीं रहते। रही बात एक्टिंग की, तो विजय सेतुपति और कटरीना कैफ दोनों ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। विजय अपनी मासूमियत से मोह लेते हैं, पर कटरीना को इस किरदार के लिए अपने एक्सप्रेशन पर और मेहनत करने की जरूरत थी। फिर भी जीरो के बाद यह उनकी एक और अच्छी परफॉर्मेंस कही जाएगी। सपोर्टिंग कलाकारों में संजय कपूर, विनय पाठक, अश्विनी कालसेकर, टीनू आनंद छोटी भूमिकाओं में भी याद रहते हैं। और हां, राधिका आप्टे भी तो हैं। रोजी का उनका किरदार बहुत थोड़ी देर का है लेकिन असल कैटलिस्ट फिल्म का वही है।
देखें या न देखें
मसाला फ़िल्मों को पसन्द करने वाले इसे देखेंगे भी नहीं और देख ली तो पसन्द नही आएगी लेकिन कोई फर्क नही पड़ता। ये फ़िल्म अपने दर्शक ढूंढ लेगी, मुझे विश्वास है। फ़िल्म मर्डर मिस्ट्री है और कहानी 80 के दशक में सेट है। खूबसूरत कैटरीना कैफ और एक्टिंग मास्टर विजय सेतुपति की बेमेल सी जोड़ी है लेकिन कहानी के हिसाब से कास्टिंग परफेक्ट है। अभिनय, पटकथा लेखन, स्क्रीन प्ले, बैकग्राउण्ड म्यूजिक सब शानदार है। पूरी फ़िल्म में सस्पेंस और थ्रिल है लेकिन क्लाइमैक्स देखकर मुस्कान आ जायेगी। ये सिर्फ निर्देशक का कमाल है। मुझे बहुत अच्छी लगी। यदि आप भी अच्छा, साफ-सुथरा थोड़ा दिमाग़ वाला सिनेमा देखना चाहते हो तो अवश्य देखें! रेटिंग- 4*/5 ~गोविन्द परिहार (14.01.24)