फ़िल्म समीक्षा: रॉकी और रानी की प्रेम कहानी
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‘रणवीर सिंह’ और ‘आलिया भट्ट’ की ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ के साथ निर्देशक के तौर पर करण जौहर बड़े पर्दे पर 7 साल बाद लौटे हैं। ड्रामा, कॉमेडी, रोमांस के साथ लोगों का भरपूर मनोरंजन करने वाली इस फिल्म से करण जौहर ने समाज की दकियानूसी सोच पर निशाना साधने की अच्छी कोशिश की है। पारिवारिक फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ और ‘कुछ कुछ होता है’, ‘कभी अलविदा ना कहना’, ‘ऐ दिल है मुश्किल’ जैसी रोमांटिक फिल्म बना चुके करण इस बार ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ में इन दोनों जॉनर का मिश्रण लेकर आए हैं। नई और पुरानी पीढ़ी के कलाकारों को एक साथ देखना सुखद अनुभव है।
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‘रॉकी और रानी’ की कहानी
कहानी दिल्ली में बसे दो ऐसे लड़के-लड़की की है, जिनका आपस में कुछ भी मैच नहीं करता और ये दो लोग हैं रॉकी रंधावा (रणवीर सिंह) और रानी चटर्जी (आलिया भट्ट)। रॉकी शहर के सबसे बड़े मिठाई वाले खानदान का वारिस है। तड़कते-भड़कते कपड़े पहनने वाला पंजाबी रॉकी प्रोटीन शेक लेकर बल्ले-शल्ले बनाने में जुटा रहता है। अंग्रेजी उसे बोलनी नहीं आती और जनरल नॉलेज से उसका दूर -दूर का ही वास्ता है। वह एक संयुक्त परिवार में रहता है, जहां घर ही नहीं बल्कि मिठाई के बिजनेस पर भी राज करने वाली उसकी सख्त दादी धनलक्ष्मी (जया बच्चन), दादी के इशारों पर चलने वाला पिता तिजोरी (आमिर बशीर), याददाश्त गंवा चुके शायर दादा (धर्मेंद्र), पति को परमेश्वर मानने वाली मां, मोटापे का शिकार बहन हैं। वहीं दूसरी तरफ रानी पढ़े-लिखे बंगाली परिवार से आती है। जो खुद एक न्यूज एंकर है। उसके पिता (टोटा राय चौधरी) कथक डांसर हैं।
रानी की मां (चुरनी गांगुली) और दादी जामिनी (शबाना आजमी भी हैं। रॉकी अपने दादा कंवल के अतीत की लव स्टोरी के कारण वह रानी से मिलता है और उस वक्त रानी को रॉकी किसी दूसरे गृह से आया हुआ एलियन लगता है। इन दोनों को पता चलता है कि कंवल और जामिनी किसी जमाने में एक-दूसरे से मोहब्बत करते थे। रॉकी रानी और उसकी दादी की मदद से अपने दादा की खोई हुई मेमोरी वापिस लाने की कोशिशों में लग जाता है। इनकी मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता है और रॉकी रानी के गहरे प्यार में पड़ जाता है, मगर रानी समझती है कि यह महज वक्ती शारीरिक आकर्षण है, फिर उसे रॉकी के प्यार का एहसास भी हो जाता है, मगर अब उनके सामने एक सबसे बड़ी समस्या है परिवारों के बीच का कल्चरल डिफरेंस, जिसे मिटाने के लिए वे तय करते हैं रानी तीन महीने रॉकी के घर रहेगी और रॉकी उतने ही समय रानी के घर। इसके आगे की कहानी ही फिल्म का मुख्य उद्देश्य है।
‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ की समीक्षा
निर्देशक करण जौहर की फिल्मों की खास बात होती है कि उनका फ्रेम लार्जर देन लाइफ होता है, उसमें बहुत से रंग होते हैं, भव्य सेट, विदेशी लोकेशन पर गाने यह सारे मसाले उन्होंने इस फिल्म में भी बरकरार रखे हैं। भावनाओं को ह्यूमर के साथ मिलाने की कला करण में है। अपनी पिछली फिल्मों की ही तरह उन्होंने पारिवारिक मूल्यों के साथ कहानी में अहम संदेश भी है। हालांकि, वहां तक पहुंचने में फिल्म समय लेती है। करण ने कॉमेडी और भावनात्मक दृश्यों के बीच दो परिवारों को लेकर जो संतुलन बनाया है, वह सराहनीय है। रॉकी जहां, रानी के गंभीर स्वभाव वाले सदस्यों के बीच रहकर हंसाता है। वहीं रानी, रॉकी के परिवार के बीच रहकर कुछ गंभीर दृश्य लेकर आती है।
सदाबहार धर्मेंद्र और शबाना आजमी के बीच किसिंग सीन की जरूरत नहीं थी। दादी के होते हुए रॉकी का अपने दादा को उनके पहले प्यार से मिलवाने वाले दृश्य थोड़े अटपटे लगते हैं। फिल्म का पहला हिस्सा बहुत धीमा है। दोनों परिवारों का इंट्रोडक्शन सीन, रॉकी और रानी के बीच पनपता प्यार और पूर्व प्रेमियों को मिलाने वाले सीन में ही चला जाता है। पहले हिस्से में नये से ज्यादा पुराने गाने- मस्त बहारों का मैं आशिक़…, मेरी प्यारी बिंदु…, हवा के साथ साथ…, अभी ना जाओ छोड़ कर…, ये शाम मस्तानी… सुनाई देते हैं, जो कई बार मजेदार लगते हैं, लेकिन कुछ देर बाद उबाऊ लगने लगते है।
अभिनय
अभिनय की बात करें तो धर्मेंद्र भावुक दृश्यों में आंखों में आंसू ले आते हैं। जया बच्चन उन महिलाओं को प्रस्तुत करती हैं, जो खुद महिला होते हुए दूसरी महिलाओं से नफरत करती हैं, इस नकारात्मक भूमिका में वह जंचती हैं। शबाना आजमी सहजता से अपनी भूमिका निभाती हैं। टोटा रॉय चौधरी का अनुभव उनके नृत्य और अभिनय में नजर आता है। चूर्णी गांगुली प्रभावित करती हैं। आमिर बशीर, क्षिती जोग, अंजलि आनंद की कास्टिंग सटीक है।
रणवीर सिंह ने एक तरह से अपना वास्तविक जीवन ही परदे पर जिया है। वह अपने खुशमिजाज अंदाज में दिखे हैं। वास्तविक जिंदगी में वह जितने ऊर्जावान हैं, उसकी झलक रॉकी की भूमिका में दिखाई देती है। भावुक दृश्यों में रणवीर छा जाते हैं। आलिया भट्ट, अभिनय की रानी साबित होती हैं। फिल्म में आलिया के कई सीन हैं जिसमें वह साथी कलाकार पर भारी पड़ती हैं। रॉकी के पिता के साथ होने वाली बहस के सीन में वह तालियां बटोरती हैं। अब आलिया भट्ट एक ऐसी अभिनेत्री की श्रेणी में चली गईं जो लीड हीरो पर भी भारी पड़ती हैं।
रॉकी दिल्ली शहर के अमीर परिवार से है, लेकिन पढ़ा-लिखा क्यों नहीं है? जब धनलक्ष्मी खुद आत्मनिर्भर है तो वह घर की बहू और पोती को आत्मनिर्भर क्यों नहीं बनने दे रही है? अजीब यह भी लगता है की रॉकी की दादी धनलक्ष्मी अपने पति को उसको पूर्व प्रेमिका से मिलने को क्यों नहीं रोकती है? इनका जवाब लेखक शशांक खेतान, सुमित रॉय और इशिता मोइत्रा लगभग पौने तीन घंटे की इस फिल्म में नहीं दे पाते हैं। इशिता के लिखे संवाद, सपनों से बेहतर तो समझौते हैं ना, कम से कम रोज तो नहीं टूटते या एक बार आप अपनी खुशियों को मौका दें, आप अपनी बेटी के लिए मजबूरी की नहीं, मजबूती की मिसाल बनें, बेहतरीन हैं जो फिल्म में वजन लाते हैं।
निर्देशन
7 साल बाद फिल्म का निर्देशन करने वाले करण जौहर ने इस कहानी के साथ एक नई सोच ऑडियंस के सामने पेश करने की कोशिश की है। कभी खुशी कभी गम, कुछ-कुछ होता है जैसी सुपरहिट फिल्में देने वाले करण लोगों की नब्ज को अच्छी तरह से पहचानते हैं लेकिन फिर भी अपनी पुराने स्टाइल में उन्होंने कुछ महत्त्वपूर्ण बदलाव किए हैं। एक शानदार लव स्टोरी पेश करने के साथ-साथ करण जौहर रॉकी और रानी की प्रेम कहानी में कई संदेश देने की अच्छी कोशिश करते हैं। इस कहानी से करण ये समझाते हैं कि समाज को आगे बढ़ाने के लिए लोगों को सबसे पहले अपनी सोच पर लगाई हुई बंदिशों से आज़ाद होना होगा फिर वह पति-पत्नी का मिलकर एक साथ काम करना हो, मर्दों का डांस सीखना हो या फिर महिलाओं के अंडरगार्मेंट्स के बारे में बिना किसी झिझक बात करना।
गीत-संगीत
फिल्म का गीत-संगीत औसत है जबकि करण जौहर की फिल्मों का संगीत एक बहुत बड़ा मजबूत पक्ष होता है। प्रीतम के संगीत में ‘तुम क्या मिले’, ‘वॉट झुमका’ जैसे गाने पसंद किए जा रहे हैं, मगर करण ने धर्मेंद और शबाना जैसी सीनियर जोड़ी के बहाने से ‘अभी न जाओ छोड़ के’ जैसे 70 के दशक के गानों का खूबसूरती से इस्तेमाल किया है। फिल्म में कई जगह परिस्थिति के हिसाब से बैकग्राउंड में इस्तेमाल किए गए पुराने गाने कहानी को बोर नहीं होने देते।
देखें या न देखें
हर निर्देशक की फिल्मों का एक टाइप होता है वैसे ही करण जौहर का एक टाइप है। यदि वह आपको पसंद हो तो मूवी मनोरंजन तो करेगी। साथ ही संदेश भी देती है। कई सीन हँसाते हैं तो कई सीन इमोशनल कर जाते हैं। फिल्म की लंबाई थोड़ी ज्यादा है जो गति को धीमा करती है लेकिन फ़िल्म एक बार देखने योग्य तो है। रेटिंग- 3/5 ~गोविन्द परिहार (30.07.23)