फ़िल्म समीक्षा: सैम बहादुर
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बायोपिक कहानियां हमेशा से फिल्मकारों को आकर्षित करती आई हैं और बात जब देश के सबसे सेलिब्रेटेड सेना प्रमुख और पहले फील्ड मार्शल मानेकशॉ की हो तो आपका जोश-खरोश चरम पर होता है। फिर ‘राजी’ जैसी सफल फिल्म की जोड़ी मेघना गुलजार-विक्की कौशल का कॉम्बिनेशन आपको उम्मीद भी खूब देता है, मगर फिल्म देखते हुए आपको महसूस होता है कि आप इस बायोपिक का पूरी तरह से सिनेमाई अनुभव लेने से वंचित रह गए हैं। हालांकि विक्की कौशल इस सच्चे किरदार में अपने अभिनय कौशल को हर तरह से दर्शाने में खरे उतरे हैं। वे फिल्म की सबसे मजबूत कड़ी साबित होते हैं।
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सैम बहादुर की कहानी
कहानी की शुरुआत होती है मानेकशॉ (विक्की कौशल) के जन्म से, जहां उसके माता-पिता उसका एक अलग नाम रखना चाहते थे। उसके बाद 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून के पहले दल में शामिल होने से लेकर देश के पहले फील्ड मार्शल के पद तक पहुंचते हुए कहानी कई उतार-चढ़ावों से गुजरती है। मानेकशॉ की जवानी की शरारतों से लेकर युद्ध के मैदान में शूरता का प्रदर्शन करने तक कहानी कई कालखंडों में विभाजित की गई है। सैम और याईहा खान (जीशान अयूब खान) बंटवारे से पहले भारतीय फौज का हिस्सा थे, दोनों के बीच गहरा याराना भी था। विभाजन के बाद याईहा पाकिस्तान की सेना का हिस्सा बने। हालांकि, मोहम्मद अली जिन्ना ने मानेकशॉ के सामने पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बनने की पेशकश भी करते हैं, मगर मानेकशॉ हिंदुस्तान को चुनते हैं। फिल्म की शुरुआत में ही पता चल जाता है कि उन्हें सैम बहादुर नाम कहां से मिला। दरअसल, उन्हें 8वीं गोरखा राइफल्स के सैनिकों द्वारा ‘बहादुर’ उपनाम दिया गया था।
फिल्म में सैम बहादुर की पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को दिखाने की कोशिश की गई है। सैम मानेकशॉ जिनकी वीर गाथाओं के साथ-साथ उनकी शरारतों और मजाक के कई किस्से आज भी बेहद मशहूर हैं। वे एक ऐसे आर्मी चीफ थे, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बात काटने से भी नहीं डरते थे। इतना ही नहीं, वे इंदिरा गांधी को स्वीटी तक कहते थे। ये सारी बातें फिल्म में भी दिखाई गई हैं।
सैम बहादुर की समीक्षा
एक लीडर के तौर पर, एक योद्धा के तौर पर, एक देशभक्त के तौर पर, एक पति के तौर पर, चाहे एक ख़ुशदिल मिजाज इंसान के तौर पर… सैम मानिकशॉ की जितनी भी तारीफ की जाए वो कम ही होगी। जब फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता है कि हीरो में कई गोली लगने के बाद भी कैसे आसानी से बच गया तो विश्वास नहीं होता। लेकिन सैम मानिकशॉ को दूसरे विश्व युद्ध में 9 गोली लगी थी फिर भी बच गए ये सच है जो आज इतिहास में दर्ज है। सोचो कितने जिन्दा दिल इंसान रहे होंगे। इसके बाद भारतीय सेना के सर्वोच्च पद पर पहुँचने वाले सैम बहादुर के प्रभावी व्यक्तित्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इनके बढ़ते कद से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी अपनी कुर्सी जाने का डर होने लगा था।
निर्देशन एवं अन्य तकनीकी पक्ष
देखें या न देखें
बायोपिक फिल्मों के शौक़ीन और विक्की कौशल की अदाकारी के लिए फिल्म देखी जा सकती है। देशप्रेम और इतिहास में रुचि रखने वाले लोग इस फ़िल्म को ज़रूर देखें। रेटिंग– 3.5*/5 ~गोविन्द परिहार (08.12.23)