फ़िल्म समीक्षा: ज़रा हटके ज़रा बचके
1 min readहिंदी सिनेमा के लिए दूसरी भाषाओं के सिनेमा से आए कलाकारों, तकनीशियनों और निर्देशकों ने काफी काम किया है। इनमें से एक नाम मराठी निर्देशक लक्ष्मण उतेकर का है। फिल्म ‘लुका छुपी’ से हिंदी फिल्म निर्देशक बने सिनेमैटोग्राफर लक्ष्मण उतेकर ने इससे पहले ‘इंग्लिश विंग्लिश’ और ‘डियर ज़िंदगी’ में सिनेमैटोग्राफर के तौर बेहतरीन काम किया है। उतेकर की पिछली फिल्म ‘मिमी’ सीधे ओटीटी पर रिलीज हुई। फ़िल्म को दर्शकों से सराहना मिली। उनकी नई फिल्म ‘ज़रा हटके ज़रा बचके’ भी जरा हटके है। अपने आसपास के समाज को सिनेमा में लाकर उस पर व्यंग्य कसने का साहस उन्होंने इस फिल्म में दिखाया है। पूरे देश में बंट रहे सरकारी फ्री पक्के मकानों के पीछे कैसे एक माफिया अपनी रोटियां सेकने में लगा हुआ है, इसका कुछ हद तक पर्दाफाश उनकी ये फिल्म अच्छे से करती है। हालांकि, फिल्म का प्रचार एक प्रेम कहानी के तौर पर हुआ है लेकिन यदि इसका नाम ‘लुका छिपी 2’ रखते तो अधिक बेहतर प्रदर्शन की संभावना रहती।
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‘ज़रा हटके ज़रा बचके’ की कहानी
इंदौर के कपिल दुबे (विक्की कौशल) और सौम्या चावला दुबे (सारा अली खान) अपनी मम्मी-पापा के साथ एक छोटे से घर में रहते हैं। कपिल योगा सिखाता है और सौम्या एक कॉचिंग क्लास में पढ़ाती है। इस घर में कपिल के मामा-मामी भी आ गए हैं, यही हैं असली परेशानी की जड़। घर इतना छोटा है कि मामा-मामी के चक्कर में दोनों को हॉल में सोना पड़ता है और फिर नए शादीशुदा जोड़े को किस-किस परेशानी से जूझना पड़ता है, उसका तो आप अंदाजा लगा ही सकते हैं। प्राइवेसी ढूंढने के चलते ये जोड़ा कई बार लॉज में जाकर समय बिताता है। इसी परेशानी का हल ढूंढने के लिए ये दोनों अपना एक सरकारी आवास योजना में घर लेने की जुगाड़ करते हैं और इसी जुगाड़ के चक्कर में ये तलाक तक लेते हैं।
‘ज़रा हटके ज़रा बचके’ की समीक्षा
डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर मिडल क्लास जॉइंट फैमिली का एक मजेदार संसार रचते हैं, जहां कई जगहों पर हास्य के खूबसूरत पल आते हैं, मगर उनकी कहानी का कोर कमजोर साबित होता है। हालाँकि कहानी का प्लॉट दर्शक की रुची बनाये रखता है। लेकिन एक खुशहाल शादि शुदा जोडा किन मुश्किल हालात में घर पाने के लिए तलाक लेने का कठोर फैसला कर सकता है? ये सवाल थोडा अखरता है जिसे क्लाईमेक्स मेंं कुछ हद तक समझाने की कोशिश की गई है। पहले हाफ में कहानी अपनी रफ्तार के साथ आगे बढ़ती है, मगर सेकंड हाफ में कहानी खिंची हुई सी लगती है। कहानी में मामा-मामी के चरित्रों से कॉमेडी और इमोशन दोनों पैदा होते हैं। संगीत फिल्म का खुशनुमा पहलू है। सचिन -जिगर के संगीत में गाने देखने-सुनने लायक हैं। संवाद कमजोर है, लेकिन कहानी में छोटे छोटे घटनाक्रम रोचकता बनाये रखते हैंं।
अभिनय एवं तकनीकी पक्ष
विकी कौशल ने छोटे शहर के पैसे बचाने वाले लड़के की भूमिका में रंग जमाया है। उन्होंने इंदौर की बोली को भी सही ढंग से पकड़ा है। कॉमिक दृश्यों में वे मजे करवाते हैं और इमोशनल सीन्स में भी अच्छे साबित होते हैं। सारा के साथ उनकी केमेस्ट्री ठीक लगी है। जहां तक सारा के अभिनय का सवाल है, उन्होंने अपनी साड़ी-चूड़ी और बिंदी लुक से अपने किरदार को मजबूत बनाने की पूरी कोशिश की है, मगर उन्हें अपनी डायलॉग डिलीवरी और इमोशंस पर थोड़ा और ध्यान देना होगा। इमोशनल सीन्स में सारा बहुत कमजोर लगी हैं। सहयोगी किरदारों में मामी की भूमिका निभाने वाली वाली कनुप्रिया पंडित ध्यान आकर्षित करती हैं। दरोगा के रूप में शारिब हाशमी और स्टेट एजेंट भगवान दास की भूमिका में इनामुलहक ने बेहतरीन काम किया है। इन दोनों ने ही अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। अन्य सहयोगी पात्र ठीक-ठाक हैं। दिन में चपरासी बनने और रात में चांदी काटने वाले किरदार में इनामुलहक ने फिल्म ‘जॉली एलएलबी 2’ के बाद फिर से प्रभावित किया है। संगीत की बात करें तो गाने पहले ही काफी हिट हैं और फिल्म में भी संगीत अच्छा ही लगता है। कहीं भी जबरदस्ती गाने नहीं हैं, म्यूजिक कहानी के साथ आगे बढ़ता है।
देखें या न देखें
‘जरा हटके, जरा बचके’ वो फिल्म है, जिसकी कहानी सही मायने में मध्यमवर्गीय परिवारों की बात करती है और कहानी का प्लॉट आम जनता के सपनों से जुड़ा है तो दर्शक खुद को कहानी से जोड़ पाता है, यही निर्देशक की कामयाबी है। यदि आपने अभी तक नहीं देखी तो ओटीटी पर देख सकते हैं। रेटिंग- 3/5 ~गोविन्द परिहार (25.06.23)