5 लाख लोगों के चंदा इकट्ठा कर बनाई गई विशेष फ़िल्म ‘मंथन’
1 min readजी हाँ, मंथन (Manthan) एक ऐसी फिल्म जिसे 5 लाख किसानों ने मिलकर प्रड्यूस किया था। उन्होंने किसी तरह दो-दो रुपये बचाकर फिल्म में लगाए थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस फिल्म को उस वक्त दो नैशनल अवॉर्ड मिले थे और तब इसे ऑस्कर में भी भेजा गया था। फ़िल्म ‘मंथन’, श्वेत क्रांति (White Revolution) पर आधारित थी। 1976 में आई इस फिल्म को श्याम बेनेगल ने निर्देशित किया था।
चंदा इकट्ठा कर बनाई गयी पहली फ़िल्म
आमतौर पर जब भी कोई फिल्म बनाई जाती है तो उसके लिए कास्टिंग के साथ-साथ बजट भी प्लान किया जाता है। उस बजट के हिसाब से ही प्रड्यूसर तय करता है कि फिल्म कैसे बनेगी लेकिन ‘मंथन’ को किसानों ने चंदा इकट्ठा करके प्रड्यूस किया था। यह 70 के दशक की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक है और हिंदी सिनेमा की पहली ऐसी फिल्म है, जिसे चंदा (first crowdfunded indian film) इकट्ठा करके बनाया गया था।
मिल्क मैन के साथ श्याम बेनेगल ने लिखी कहानी
1976 में इमर्जेंसी के दौरान रिलीज हुई ‘मंथन’ में किसानों और पशुपालकों के संघर्ष को बड़े ही मार्मिक अंदाज में फिल्मी पर्दे पर उतारा गया था। ‘मंथन’ की कहानी वर्गीज कुरियन (Verghese Kurien) और श्याम बेनेगल ने मिलकर लिखी थी। वर्गीज कुरियन को भारत में वाइट रेवॉल्यूशन यानी श्वेत क्रांति का ध्वजवाहक कहा जाता है। उन्होंने ही दूध के प्रोडक्शन में भारत को दुनिया में नंबर वन बना दिया था। वर्गीज कुरियन को मिल्क मैन भी कहा जाता है। वर्गीज कुरियन ने 1970 में ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की, जिसके कारण भारत में श्वेत क्रान्ति आ गयी। देखते ही देखते भारत दूध के प्रोडक्शन में पूरी दुनिया में छा गया। तब श्याम बेनेगल और वर्गीज कुरियन ने मिलकर इस एतिहासिक सफलता को फिल्म के रूप में उतारने का फैसला किया। बात बन गई और फिर ‘मंथन’ बनने का सिलसिला शुरू हुआ।
किसानों ने कमाई से बचाकर लगाए 2-2 रुपये
‘मंथन’ में गिरीश कर्नाड, कुलभूषण खरबंदा, स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह, अमरीश पुरी, अनंत नाग और मोहन अगाशे जैसे मंझे हुए कलाकार थे। चूंकि फिल्म की कहानी उन किसानों पर आधारित थी, जो गांवों में सहकारी समिति बनाने में लगे थे। ऐसे में कोई भी प्रड्यूसर इस फिल्म पर पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं था। फिल्म का बजट 10 से 12 लाख रुपये था। पैसों का जुगाड़ नहीं हो पा रहा था। ऐसे में ‘मंथन’ बनाने का सपना पूरा हो पाएगा, इस पर संदेह था। तब वर्गीज कुरियन और श्याम बेनेगल ने एक तरीका निकाला। उन्होंने किसानों से 2-2 रुपयों का चंदा इकट्ठा करने का फैसला किया। उन्होंने गुजरात में जो सहकारी समिति बनाई थी उससे करीब 5 लाख किसान जुड़ चुके थे। कुरियन उस वक्त अमूल को-ऑपरेटिव के संस्थापक थे। उन्होंने किसानों से अपील की वो दूध बेचकर जो कमाते हैं, उससे 2-2 रुपये दान कर दें ताकि जो चंदा इकट्ठा हो, उसकी मदद से फिल्म बनाई जा सके और किसानों के संघर्ष को पूरी दुनिया को दिखाया जा सके।
किसानों ने बात मान ली। उस वक्त कुरियन की गुजरात में बनाई सहकारी समिति से करीब 5 लाख किसान जुड़े थे। उन सभी किसानों ने अपनी कमाई से 2-2 रुपये बचाए और फिल्म ‘मंथन’ में लगा दिए। इस तरह ‘मंथन’ एक ऐसी फिल्म बन गई, जिसे 5 लाख किसानों ने प्रड्यूस किया।
मंथन ने 2 नैशनल अवॉर्ड जीते, ऑस्कर में भी गई
कमाल की बात यह रही कि ‘मंथन’ रिलीज होते ही हिट हो गई। इसे बेस्ट फीचर फिल्म और बेस्ट स्क्रीप्ले के लिए 2 नैशनल अवॉर्ड मिले। यही नहीं ‘मंथन’ को 1976 भारत की तरफ से ऑस्कर में भी भेजा गया। ‘मंथन’ की शूटिंग गुजरात के सान्गवा गांव में हुई थी। इस गांव में फिल्म के कलाकारों ने करीब 45 दिनों तक डेरा डाला था। फिल्म में गांव के रहने वाले किसानों में भी काम किया। श्याम बेनेगल उन किसानों को रोजाना 7 रुपये दिया करते थे, जो फार्म में पूरे दिन काम करने के बाद सिर्फ 5 रुपये ही कमा पाते थे। तब श्याम बेनेगल ने फिल्म ‘मंथन’ की टीम के साथ सान्गवा गांव के सरपंच की शादी में भी शिरकत की थी और उपहार के तौर पर 50 रुपये दिए थे।