दोस्ती पर आधारित बॉलीवुड की टॉप-10 फ़िल्में
1 min readएक अच्छे दोस्त की परिभाषा हर किसी के हिसाब से अलग- अलग हो सकती है लेकिन हर कोई चाहता है कि उसका दोस्त ऐसा हो जो हर बुरे वक्त में उसके साथ खड़ा रहे। बॉलीवुड में भी कई फिल्में दोस्ती पर बनी है। कुछ फिल्में तो इतनी लाजवाब हैं जिनकी हमेशा चर्चा होती है। बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी दोस्ती-यारी को बेहद ही अच्छे अंदाज में पेश किया गया है। जहां से आप दोस्ती के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। वो चाहे फिल्म शोले (Sholay) में जय और वीरू की यारी हो या फिर फिल्म 3 इडियट्स (3 Idiots) में राजू रस्तोगी, फरहान कुरैशी और रंचो की दोस्ती हो इन सबसे हम दोस्ती के नये सलीके सीखते हैं। हिंदी फिल्मों में दोस्ती हमेशा ही एक हिट फॉर्मूला रहा है। दौर कोई भी रहा हो फिल्मकारों ने दोस्ती भुनायी। फिल्मों में दोस्ती का रिश्ता कई बार खून के रिश्ते से भी गाढ़ा दिखाया गया है। दर्शकों को ऐसी फिल्में पसंद आती रही हैं। इसकी वजह साफ है। दोस्ती की इन फिल्मों से दर्शक खुद को आसानी से कनेक्ट कर लेते हैं। जिन किरदारों को वह पर्दे पर साकार होते देख रहे होते हैं कुछ वैसे ही किरदार खुद उनकी जिंदगी में होते हैं। कई बार वह खुद को ही फिल्म का हीरो मान बैठते हैं। 1 अगस्त को भारत में फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है। आइये जानते हैं बॉलीवुड की दोस्ती पर आधारित टॉप-10 फ़िल्मों के बारे में।
बॉलीवुड की टॉप-10 दोस्ती पर आधारित फ़िल्में / Top 1o Bollywood Films on Friendship
10. रॉक ऑन! / Rock On! (1981)
फ़िल्म की कहानी में 3 दोस्त एक रॉक बैंड बनाते हैं। फरहान अख्तर, पूरब कोहली, अर्जुन रामपाल और ल्युक केन्नी की फिल्म रॉक ऑन यही बताती है कि सच्चे दोस्त कभी नहीं बिछडते। रॉक ऑन! एक भारतीय रॉक संगीतमय फिल्म है जिसे लिखित और निर्देशित अभिषेक कपूर ने किया और शंकर एहसान-लॉय ने संगीत दिया है। फिल्म फरहान अख्तर और प्राची देसाई की पहली बॉलीवुड फिल्म है। इस फ़िल्म ने 2 नेशनल अवार्ड के साथ 7 फ़िल्मफेयर अवार्ड अपने नाम किये हैं। इस फ़िल्म को बॉलीवुड की सबसे बेहतरीन फ़िल्मों में एक माना जाता है।
9. याराना / Yaarana (1981)
किशन (अमिताभ बच्चन) और बिशन (अमजद ख़ान) बचपन के दोस्त हैं। किशन एक अनाथ है, लेकिन आत्मनिर्भर और कड़ी मेहनत करने वाला है, जबकि बिशन एक समृद्ध पृष्ठभूमि से आता है। दोनों के बीच दोस्ती बेहद मजबूत है। जवानी में जब दोनों मिलते हैं, तब बिशन (अमज़द खान) ने पता लगाया कि किशन (अमिताभ बच्चन) की आवाज़ बहुत अच्छी है। बिशन अब एक सफल व्यवसायी है और वह किशन की गायन प्रतिभा को बढ़ावा देना चाहता है। किशन को हस्ती बनने के लिए आगे बढ़ाता है। इस बीच बिशन अपने विश्वासघाती मामा (जीवन) और ममेरे भाई (रंजीत) द्वारा निर्धारित षड्यंत्र में पड़ जाता है। उसे कई बंधकों के साथ अगवा कर लिया जाता है। वहाँ उत्पीड़न और यातना से बिशन अपनी मानसिक स्थिरता खो देता है और सदमे में चला जाता है। उसके बाद उसे एक पागलखाने में डाल दिया जाता है और उसके बाद उसे भूलने की बीमारी का अनुभव होता है। किशन मानसिक रूप से बीमार होने का नाटक करता है और अधिकारियों को धोखा देकर पागलखाने में घुस जाता है। वह उसकी याददाश्त को वापिस ले आता है। फ़िल्म के सभी गाने बहुत बड़े हिट हुए। तेरे जैसे यार कहाँ… गीत आज भी धूम से गाया-बजाया जाता है।
8. काय पो छे! / Kai Po Che! (2013)
“काई पो छे” दरअसल एक गुजराती स्लैंग है जो पतंगबाजी के दौरान इस्तेमाल किया जाता है। जब कोई अपने प्रतिद्वंदी की पतंग को काट देता है तो खुशी का इजहार करने के लिए काई पो छे यानि ‘मैंने पतंग काट दी’ बोलता है। इस फ़िल्म की कहानी चेतन भगत के उपन्यास ‘द 3 मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ’ पर आधारित है। ये कहानी है तीन दोस्तों की, गोविंद (राजकुमार राव), ईशान (सुशांत सिंह राजपूत) और ओमी (अमित साध) जो अहमदाबाद में रहते हैं। गोविंद रोज़ी रोटी के लिए ट्यूशन पढाता है और ईशान एक शानदार क्रिकेट खिलाड़ी है जो कुछ भी नहीं करता। तीनों दोस्त एक खेल अकादमी शुरु करने के बारे में सोचते हैं। ईशान की मां (मुन्नी झा) पैसों की मदद करने से मना कर देती है तो ओमी के मामा बिट्टू (मानव कौल) मदद के लिए आगे बढ़ते हैं। अभिषेक कपूर द्वारा
7. छिछोरे / Chhichhore (2019)
इस फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत, श्रद्धा कपूर, वरुण शर्मा, प्रतीक बब्बर आदि मुख्य किरदार निभा रहे हैं। इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला है। लूजर शब्द का सही मतलब समझाने के लिए सुशान्त सिंह राजपूत अपने बेटे (जिसने परीक्षा में फेल होने पर आत्महत्या का प्रयास किया होता है) को अपनी कॉलेज लाइफ के किस्से सुनाता है। इन किस्सों में ही असली मज़ा है। यहां एक के बाद एक सभी किरदार सामने आते जाते हैं। सुशान्त यानी अनिरुध बन जाता है अन्नी और उसके साथी हैं सेक्सा, एसिड, मम्मी, डेरेक, बेवड़ा और माया। भारत के नंबर वन इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ रहे इन सातों की कॉलेज लाइफ आपको समय समय पर दोस्ती का बेहतरीन अहसास दिलाती रहती है। आपसी रिश्ते, दोस्ती, प्रतिस्पर्धा, जुनून और सकारात्मकता के साथ कहानी आगे बढ़ती है। दंगल बनाने वाले निर्देशक नितेश तिवारी ने फ़िल्म ऐसी बनाई है कि शायद हर दर्शक इन कहानियों से अपनी कॉलेज की कहानियों को जोड़ पाएगा। फ़िल्म की दोस्ती पर आधारित तो नहीं है लेकिन जिन्दगी में दोस्ती का महत्त्व ज़रूर बताती है।
6. 3 इडियट्स / 3 Idiots (2009)
बॉलीवुड की सबसे हिट फिल्मों में से एक है आमिर खान, आर माधवन और शरमन जोशी की फिल्म 3 इडियट्स। इंजीनियरिंग कॉलेज लाइफ के मजेदार किस्से बताती है ये फिल्म। रेंचो यानी रणछोड़दास श्यामलदास चांवड़ (आमिर खान) शहर के नंबर 1 इंजीनियरिंग कॉलेज में एंट्री करता है तो हर वक्त नंबर 1 की रेस और शानदार करियर के पीछे भागते स्टूडेंट्स को लगता है कि उन्हें यह साथी खुली हवा में उड़ने का मौका देने पहुंचा है। रैंचो के रूम पार्टनर फरहान कुरैशी (आर. माधवन) और राजू रस्तोगी (शरमन जोशी) का भी यही हाल है। राजू इस कॉलेज में इसलिए पहुंचा है क्योंकि लकवे के शिकार उसके पिता और जिंदगीभर परिवार का पेट पालने वाली मां का सपना है कि वह इंजीनियर बने। वहीं, फरहान के अब्बा (परीक्षित साहनी) ने तो उसके पैदा होने पर ही उसके इंजीनियर बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था। उन्हें इस बात से कुछ लेना-देना नहीं कि फरहान वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर बनना चाहता है। फ़िल्म दोस्ती पर आधारित नहीं लेकिन में दोस्ती को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। फ़िल्म के तीनों मुख्य पात्र आपस में बहुत अच्छे दोस्त होते हैं जो उनकी जिन्दगी के अहम मौकों पर एक दूसरे का साथ देते हैं। ये फ़िल्म बॉलीवुड की सबसे सफल फ़िल्मों में से एक हैं।
5. दिल चाहता है / Dil Chahta Hai (2001)
सैफ अली खान, आमिर खान और अक्षय खन्ना स्टारर ये फिल्म बताती है कि दोस्तों में कितना भी बड़ा झगडा क्यों ना हो जाएं, ज़रूरत पड़ने पर वो एक हो ही जाते हैं। तीन दोस्तों की कहानी दर्शाती है कि कैसे तीन युवक उम्र के साथ ज़िम्मेदारी समझते हैं। फ़िल्म के मुख्य किरदार समीर (सैफ अली खान), सिद्धार्थ (अक्षय खन्ना) व आकाश (आमिर खान) हैं। आकाश प्रेम की अवधारणा पर विश्वास नहीं करता है। समीर बेहद रोमांटिक लेकिन भ्रमित लड़का है। जब भी वह किसी लड़की की ओर आकर्षित होता है तो वह सोचता है कि उसे सच्चा प्यार मिल गया है। पेशे से कलाकार और तीनों में से सबसे परिपक्व सिद्धार्थ, रोमांस में रूचि नहीं रखता और अपने काम के प्रति बहुत गंभीर, परिपक्व और समर्पित हैं। आकाश, जो अपने निजी जीवन में बेअदब आदमी है, जल्दबाजी में शालीनी (प्रीति जिंटा) नाम की एक लड़की से प्यार का इजहार करता है बिना ये जाने कि वह किसी रोहित नामक लड़के से सगाई कर चुकी है। वह समीर और उसकी तत्कालीन प्रेमिका प्रिया (सुचित्रा पिल्लई) के बीच ब्रेकअप भी कराता है। फ़िल्म के गीत बहुत ही लोकप्रिय हुए हैं। ‘प्लेनेट बॉलीवुड’ ने अपनी 100 सर्वश्रेष्ठ बॉलीवुड एल्बमों की सूची में शामिल किया। फ़िल्म को फ़रहान अख्तर ने डायरेक्ट किया है।
4. शोले / Sholay (1975)
शोले फिल्म दो अपराधी दोस्तों जय और वीरू (अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र) पर फिल्माई गई है। फिल्म में यूपी के एक गांव रामगढ़ की कहानी को दर्शकों के सामने रखा गया है। गांव में रिटायर्ड पुलिस ऑफीसर बलदेव सिंह (संजीव कुमार) होता है। रामगढ़ के लोग कुख्यात डाकू गब्बर सिंह (अमजद ख़ान) से बहुत परेशान होते हैं जिससे बलदेव सिंह उसके आतंक से बचने के लिये उन दोनों अपराधियों जय और वीरू को बुलाता है। जया भादुरी और हेमा मालिनी ने भी फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं। शोले को भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है। ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट के 2002 के “सर्वश्रेष्ठ 10 भारतीय फिल्मों” के एक सर्वेक्षण में इसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। 2005 में 50वें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में इसे 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी मिला है। शोले फ़िल्म का गीत ‘ये दोस्ती… हम नहीं तोडेंगे…’ कल्ट क्लासिक है जो आज भी दोस्ती की मिसाल की तरह गाया जाता है। शोले में दोस्ती को एक भाई-भाई वाले रिश्ते के तौर पर दिखाया गया है क्योंकि दोनों दोस्त अनाथ होते हैं इसलिए दोनों ही एक दूसरे के लिए सब कुछ होते हैं। यही बात दर्शकों को खूब पसंद आयी थी।
3. रंग दे बसंती / Rang De Basanti (2006)
आमिर खान, आर माधवन, शरमन जोशी, सिद्धार्थ और सोहा अली खान की यह फिल्म उन दोस्तों की कहानी है जो अपने एक दोस्त के मौत के बाद बदला लेने की ठान लेते है और करप्शन के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाते हैं। यह फ़िल्म दोस्तों के लिए या युवाओं के लिए आदर्श मानी जाती है क्योंकि इसमें युवा दोस्तों जैसा दिखाया गया है उससे हर युवा दर्शक बहुत हद तक जुड़ा महसूस करता है। बेबाकी और बेतरतीबी से जीने वाला युवा। भारत की सड़कों पर तफरीबाज़ी करता युवा। कॉलेज के कैंटीन में चाय की चुस्कियां लेता युवा। और एक रात में, एक हादसे से देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझता युवा। रंग दे बसंती उन युवा दोस्तों की कहानी है जो यूं ही ज़िंदगी बिताते हुए एक दिन कुछ कर गुज़रने की ठानते हैं। जिनका खून एक दिन उबलता है और फिर उसकी आंच में उनकी देशभक्ति पकती है। जिन्हें यकीन हो जाता है कि वो चाहे तो कुछ भी कर सकते हैं और वो चाहें तो कुछ ना करें। इस देश को बदलने की ज़िम्मेदारी उनकी भी उतनी ही है जितनी बाकियों की। इस देश की सुरक्षा अंदर से भी उतनी ही करनी है जितनी सीमा पर खड़े होकर करनी है। रंग दे बसन्ती ने 4 नेशनल अवार्ड, 6 फ़िल्मफेयर अवार्ड्स, ऑस्कर नॉमिनेशन सहित ढेरों अन्य अवार्ड्स अपने नाम किये हैं।
2. ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा / Zindagi Na Milegi Dobara (2011)
जिन्दगी में दोस्तों की जगह, उनकी अहमियत और उनकी जरूरत को निर्देशिक जोया अख्तर ने बखूबी पर्दे पर उतारा है। फिल्म की कहानी सीधी और सिंपल होने के साथ रोमांचक भी है। ऋतिक रोशन, फरहान अख्तर और अभय देओल की यह फिल्म ज़िन्दगी जीना सिखाती है। कबीर (अभय देयोल) के शादी से पहले वो इमरान (फ़रहान अख्तर) और अर्जुन (रितिक रोशन), जो अपने दो सबसे अच्छे दोस्त हैं, उनके साथ एक लंबे रोड ट्रिप पर जाना चाहता है। केवल समस्या यह है कि अर्जुन अपने काम में व्यस्त है। बहुत अनुनय के बाद सभी यात्रा शुरू करते हैं। इस रोड ट्रिप की शर्त ये है कि ट्रिप के दौरान सभी अपनी पसन्द के एक साहसिक खेल को चुनेंगे और बाकी दोनों को उसमे भाग लेना ही होगा। फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं जो पल भर में आपको हंसने और पल भर में आपको रोने के लिए विवश कर देंगे। इस फिल्म में स्पेन के मशहूर ‘ला टोमेटिना’ फेस्टिवल की झलक और वहाँ के कई मशहूर जगहों को फिल्माया गया है। इस फ़िल्म को ‘दिल चाहता है’ का एक्सटेंडेड वर्जन कहा जा सकता है। जोया अख्तर द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म को बॉलीवुड की महानतम फ़िल्मों में शुमार किया जाता है। 2 नेशनल अवार्ड के अलावा इस फ़िल्म ने 7 फ़िल्मफेयर पुरस्कार अपने झोली में डाले।
1. दोस्ती / Dosti (1964)
1964 में बनी इस फ़िल्म को दोस्ती पर आधारित सबसे फ़िल्म माना जा सकता है। यह फ़िल्म एक अपाहिज लड़के और एक अन्धे लड़के के बीच दोस्ती को दर्शाती है। रामनाथ गुप्ता उर्फ़ रामू (सुशील कुमार) के पिता एक फ़ैक्टरी हादसे में चल बसते हैं। जब फ़ैक्टरी उनकी मौत का हर्ज़ाना देने से इन्कार कर देती है तो उसकी माँ (लीला चिटनिस) यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाती है और वह भी दम तोड़ देती है। सड़क दुर्घटना में रामू अपनी एक टांग गंवा बैठता है। बेघर, बिन पैसे के और अपाहिज रामू जब मुंबई की सड़कों की ख़ाक छान रहा होता है तो उसकी मुलाकात मोहन (सुधीर कुमार) नाम के एक अन्धे लड़के से होती है जिसकी कहानी भी रामू के जैसी ही है। मोहन गांव का रहने वाला है और बचपन में ही अपनी आँखें खो बैठा है। मोहन की बहन मीना गांव से शहर नर्स बनने के लिए आई थी ताकि मोहन की आँखों का इलाज करा सके। अब मोहन अपनी बहन को ढूंढता हुआ शहर आया है। रामू और मोहन गलियों में गाकर अपना पेट भरने लगते हैं और सड़क के किनारे ही सो जाते हैं। इस फ़िल्म को 1964 के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में 6 पुरस्कारों से नवाज़ा गया जिसमें फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार भी शामिल है। यह फ़िल्म उस वर्ष की 10 सबसे ज़्यादा चलने वाली फ़िल्मों में एक थी और बॉक्स ऑफ़िस में “सुपरहिट” मानी गयी।
दोस्ती पर आधारित अन्य महत्त्वपूर्ण फ़िल्में
सोनू के टीटू की स्वीटी, ये जवानी है दीवानी, कुछ कुछ होता है, जाने तू… या जाने ना, गोलमाल (2006), मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस, प्यार का पंचनामा, रॉकफ़ॉर्ड (1999), कोई मिल गया, फुकरे, साथी, हाथी मेरे साथी, सौदागर, साड्डा अड्डा, गुंडे, दोस्ताना (2008), दोस्ताना (1980) वीरे दी वेडिंग। {अपडेट दिनांक:- 20 जनवरी 2022}
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