बॉलीवुड इतिहास के टॉप-10 विलेन
1 min readबॉलीवुड इतिहास के टॉप-10 विलेन / Top 10 Villains of Bollywood History
विलेन यानी कि खलनायक हिंदी सिनेमा की मुख्य धारा में एक ऐसा चरित्र रहा है, जिसने अपनी क्रूरता, दुष्टता, चालाकी, धोखेबाजी और धूर्तता से फिल्म में खुद को नायक के बराबर खड़ा किया। भारतीय सिनेमा, चाहे वह हिंदी की मुख्यधारा हो या क्षेत्रीय, हमें महान खलनायक देने से कभी नहीं कतराता। यही कारण है कि हमारे पास कुछ सर्वश्रेष्ठ फिल्म खलनायक थे। यहाँ बॉलीवुड फिल्मों के बेस्ट 10 खलनायक हैं जो नायक से लाइमलाइट चुराते हैं, और बॉलीवुड के प्रशंसकों के लिए आइकन बन गए हैं। नायक जब तक नायक नहीं है तब तक कि वह एक खलनायक का सामना नहीं करता है। अच्छा खलनायक अथवा विलेन वही है जो दर्शक के दिलो दिमाग़ में डर, नफ़रत पैदा कर दे। साथ ही साथ एक बार देखने के बाद उसकी हरकतें अविस्मरणीय बनी रहें। वही अच्छा खलनायक माना जा सकता है। कई सालों से भारतीय सिनेमा खलनायकों के लिए एक खेल का मैदान रहा है। बॉलीवुड के खलनायकों के नकारात्मक और मनोरंजन पहलुओं ने हमेशा फिल्मों में मसाला डाला है। खलनायक पात्रों ने दर्शकों के बीच भय, घृणा और शक्ति को उत्पन्न किया है, उनके द्वारा चित्रित की गई प्रतिष्ठित भूमिकाओं के माध्यम से। बॉलीवुड ने खलनायकों को विभिन्न रंगों में विकसित होते देखा है। बॉलीवुड ख़ज़ाना टीम की रिसर्च और दर्शकों की पसंद अनुसार बॉलीवुड के टॉप-10 विलेन की सूची इस प्रकार है-
10. केसरिया विलायती– गुलशन ग्रोवर (राम लखन, 1989)
वर्ष 1989 में प्रदर्शित फिल्म ‘राम लखन’ गुलशन ग्रोवर के सिने करियर की महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुयी। सुभाष घई के निर्देशन में बनी इस फिल्म में गुलशन ग्रोवर को बतौर खलनायक एक छोटी सी भूमिका निभाने का अवसर मिला। किरदार का नाम था ‘केसरिया विलायती’। इस फिल्म में उनका बोला गया संवाद ‘बैडमैन’ दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद गुलशन ग्रोवर फिल्म इंडस्ट्री में बैडमैन के नाम से मशहूर हो गये। उनकी पर्दे पर छवि ही कुछ ऐसी रही है। उनके डॉयलॉग भी खासे मशहूर हैं। बॉलीवुड के ‘बैडमैन’ अपनी इमेज को लेकर खासे चर्चा में रहते हैं। खास बात यह है कि उन्होंने कभी भी हीरो बनने का सपना ही नहीं देखा, जबकि उन्हें पद्मिनी कोल्हापुरी के पति ने दक्षिण की फिल्म में हीरो की भूमिका ऑफर की। शबाना आज़मी ने भी हीरो का रोल करने को कहा, लेकिन उन्होंने खुद इनकार कर दिया। खलनायकी के ब्रैण्ड को वह अपने जीवन की सफलता मानते हैं। तकरीबन 400 फिल्मों में काम कर चुके गुलशन ग्रोवर बॉलीवुड के बेहतरीन विलेन के रूप में स्थापित हुए। उनका एक संवाद बैडमैन आज भी लोगों के जुबान पर है। फिल्मी पर्दे पर आते ही उनके चेहरे पर खलनायक वाली हंसी उन्हें बॉलीवुड के डेंजर विलेन में शामिल करती है। उन्होंने कई फिल्मों में विलेन का रोल किया और अपने बेहतरीन अभिनय से कई पात्रों और चरित्रों को अमर कर दिया। ‘मैडम माया तेरी तो मैं पलट दूंगा काया’ फिल्म ‘खिलाड़ियों के खिलाड़ी’ में बोला गया उनका ये डायलॉग बेहद हिट हुआ। फिल्म में ये डायलॉग गुलशन ग्रोवर ने रेखा को बोला। ‘जिंदगी का मजा तो खट्टे में ही है’ फिल्म दिलजले में गुलशन ग्रोवर का ये डायलॉग भी बेहद हिट हुआ।
9. गजेन्द्र- प्राण (राम और श्याम, 1967)
प्राण (Pran) ने शक्ति कपूर, प्रेम चोपड़ा की तरह काफी अलग भूमिकाएं निभाई हैं, लेकिन जो चीज उन्हें अलग करती है वह यह है कि वह चरित्र को वास्तव में विश्वसनीय बनाते हैं, जैसे कि चरित्र वास्तव में जीवित हो। प्राण ने दिलीप कुमार की सुपरहिट फ़िल्म ‘राम और श्याम’ में ऐसे दमनकारी बहनोई गजेन्द्र की भूमिका निभाई, जिसे सभी दर्शक नफ़रत करते थे। भूमिका से अधिक, यह प्राण ही थे जो बुरे लड़के की भूमिका निभाने में काफी सहज हो गये थे।
8. रामाधीर सिंह- तिग्मांशु धूलिया (गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, 2012)
गैंग्स ऑफ वासेपुर की दोनों फिल्मों में कई प्रतिष्ठित किरदार थे, और वे सभी किसी न किसी तरह से बुरे थे लेकिन तिग्मांशु धूलिया द्वारा निभाया गया रामाधीर सिंह असली खलनायक था। जिस तरह से उन्होंने चरित्र को जीया और उसे पर्दे पर उतारा वह वाकई उल्लेखनीय है। रामाधीर सिंह का डायलॉग “बेटा तुमसे ना हो पाएगा” लोगों की जबान पर चढ़ गया था। एक्टिंग के अलावा तिग्मांशु को फिल्म डायरेक्शन में पुरानी महारत हासिल है। इरफान के साथ तिग्मांशु ने हासिल, चरस और पान सिंह तोमर जैसी सुपरहिट फिल्में बनाई हैं।
7. प्रेम- प्रेम चोपड़ा (बॉबी, 1973)
यदि आपको प्रेम चोपड़ा का यह डायलॉग “प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा” नहीं सुना है, तो आपको वास्तव में अच्छी फिल्में देखने की जरूरत है। बॉलीवुड के शौमेन राज कपूर (Raj Kapoor) द्वारा निर्देशित बॉबी फिल्म ने अमीर-बनाम-गरीब संघर्ष की थीम के साथ बॉलीवुड में किशोर रोमांस की शैली पेश की। जबकि यह डिंपल कपाडिया की पहली फ़िल्म थी लेकिन प्रेम चोपड़ा ने खलनायक के रूप में सुर्खियों में छा गये। एक आकर्षक, मृदुभाषी लेकिन चतुर, स्टाइलिश लेकिन महिलावादी – प्रेम चोपड़ा ने पश्चिमी संस्कृति को हिंदी फिल्मों में परदे पर युवा पीढ़ी को प्रेरित किया। वास्तव में, यह माना जाता है कि प्रेम चोपड़ा ने स्क्रीन पर यौन छेड़छाड़, बहुविवाह, अवैध संबंध की प्रवृत्ति शुरू की, जिसे बाद में रंजीत और शक्ति कपूर ने आगे बढाया। उनका सर्वश्रेष्ठ “उपकार”, “दो रास्ते”, “कटी पतंग”, “दो अंजाने”, “आस पास”, “दोस्ताना” और “फूल बन अंगारे” में देखा जा सकता है।
6. लायन- अजीत (कालीचरण, 1976)
हिंदी सिनेमा के मशहूर ‘बॉस’, अजीत को “मोना डार्लिंग”, “लिली डोंट बी सिली”, “स्मार्ट बॉय” और “सारा शहर मुझे लियोन के नाम से जानता है” जैसे प्रसिद्ध संवादों के लिए जाना जाता था।। डकैत से व्यवसायी तक, उन्होंने “जंजीर” के बाद माफिया के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की। उनकी गंभीर आवाज ने उन्हें भारतीय सिनेमा के सबसे प्रसिद्ध खलनायकों में से एक बना दिया। उनका सर्वश्रेष्ठ “मुग़ल-ए-आज़म”, “ज़ंजीर”, “यादों की बारात”, “खोटे सिक्के” और “कालीचरण” में देखा जा सकता है।
आईकॉनिक डायलॉग:- “सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है”
5. लज्जा शंकर पांडे- आशुतोष राणा (संघर्ष, 1999)
आशुतोष राणा, हिन्दी सिनेमा में खलनायक चरित्रों के लिए जाने जाते हैं, ऐसा कहा जाये तो ग़लत नहीं होगा। उन्होंने एक धार्मिक कट्टर चरित्र ‘लज्जा शंकर पांडे’ की ऐसी भूमिका निभाई, जो यह मानता था कि छोटे बच्चों को मारना और उनका बलिदान करना उसे अमर बना देगा। उसकी रक्त-रंजित चीखें और जाप किसी बुरे सपने से कम नहीं हैं। इसके लिए आशुतोष राणा ने सर्वश्रेष्ठ खलनायक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीता और अपने अभिनय के लिए सकारात्मक समीक्षा प्राप्त की। इसके अलावा आशुतोष राणा के पास दुश्मन में गोकुल पंडित, बादल में डीआईजी जय सिंह राणा जैसे कई खलनायक चरित्र हैं जो दर्शकों के जेहन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
4. कांचा चीना- डैनी (अग्निपथ, 1990)
ऐसा कोई खलनायक नहीं हुआ है जो डैनी डेंग्ज़ोपा के कांचा चीना की तरह स्टाइलिश हो। अग्निपथ, दुर्भाग्य से, बॉक्स ऑफिस पर फ़लॉप हुई थी लेकिन आलोचकों और दर्शकों दोनों का मानना था कि फिल्म में अपने अमिताभ और डैनी, मिथुन आदि का अभिनय अब तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों में से एक है। डैनी डेन्जोगप्पा ने कांचा चीना (अग्निपथ), बख्तावर (हम), चतुर सिंह चिता (क्रांतिवीर), एसीपी नेगी (बरसात) और कात्या (घातक) जैसी कई यादगार खलनायक चरित्र निभाये हैं। लेकिन उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए फिल्मफेयर पुरस्कारों में नामित किया गया था- “अग्निपथ” के लिए और अन्य सभी फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ खलनायक। डैनी ने कुछ अंतरराष्ट्रीय फ़िल्मों में भी अभिनय किया है जैसे ‘सेवन इयर्स इन तिब्बत’ इनमें सबसे बड़ी है जहां उन्होंने हॉलीवुड स्टार ब्रैड पिट के साथ स्क्रीन साझा किया था।
3. शाकाल- कुलभूषण खरबन्दा (शान, 1980)
शाकाल शायद हिंदी सिनेमा का पहला हाईटेक विलेन था। जिस तरह रमेश सिप्पी की फिल्म शोले (Sholay) गब्बर का पर्याय बन गई थी, वैसे ही शान (Shaan) शाकाल के लिए मशहूर थी। कुलभूषण खरबंदा ने कुछ अच्छी भूमिकाएँ की हैं लेकिन शान में उनकी भूमिका उल्लेखनीय थी। हमेशा फिल्मों में एक अच्छी शख्सियत के रूप में देखे जाने पर, उनमें से ज्यादातर लोग उस समय काफी हैरान थे जब उन्होंने एक खलनायक के रूप में चुना। शार्क और मगरमच्छ के साथ उनका अपना द्वीप था। हालांकि फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं डाल सकी, लेकिन शाकाल “ये जहरीली गैस धीरे धीरे महफिल को और रंगीन बनाती रहेगी” जैसे संवादों के साथ दर्शकों के दिमाग में आज भी ताजा है।
आईकॉनिक डायलॉग:- “ये ज़हरीली गैस धीरे धीरे महफिल को और रंगीन बनाती रहेगी”
2. मुगेम्बो- अमरीश पुरी (मि. इंडिया, 1987)
बॉलीवुड में सर्वश्रेष्ठ खलनायक के रूप में पहचाने जाने वाले इस किरदार को अमरीश पुरी ने निभाया था। अलंकृत बेंत और सिंहासन के साथ अजीब पोशाक पहने और वफादारों के एक बैंड के साथ, उन्होंने उस दशक में बुराई की परिभाषा का प्रतिनिधित्व किया। हॉलीवुड निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग ने भी मुगेम्बो का चरित्र देखने के बाद कहा था “अमरीश मेरे पसंदीदा खलनायक हैं।” मिस्टर इंडिया में अमरीश पुरी द्वारा निभाया गया मुगैम्बो का चरित्र हिंदी फिल्मों में खलनायक के रूप में सबसे प्रतिष्ठित माना जाता है। यह चरित्र सर्वोत्कृष्ट भारतीय खलनायक था। यह चरित्र इतना दमदार था कि कई वर्षों तक कई फिल्मों में खलनायक के लिए इसे एक मॉडल की तरह प्रयोग किया गया। 80 के दशक में, वह “मिस्टर इंडिया” की रिलीज के बाद हिंदी फिल्मों में एक प्रधान खलनायक बन गए थे। फिल्म में उन्होंने एक सुपर विलेन मोगैम्बो का किरदार निभाया और उनका संवाद “मोगैम्बो ख़ुश हुआ”, गब्बर सिंह के ‘कितने अदमी थे’ की तरह हिंदी सिनेमा की सबसे अच्छी पहचान वाली लाइनों में से एक था।
आईकॉनिक डायलॉग:- “मुगेम्बो खुश हुआ”
1. गब्बर सिंह- अमजद ख़ान (शोले, 1975)
भारतीय सिनेमा में एक निर्मम खलनायक होने का श्रेय अमजद खान को जाता है, जिन्होंने ऐतिहासिक फ़िल्म “शोले” में डाकू गब्बर सिंह का किरदार निभाया था। डाकू गब्बर सिंह का चरित्र जो अभी भी किसी भी चरित्र से अजेय है। उनका सनकी अंदाज, शानदार हंसी और थिरकते संवाद आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी याद किए जाते हैं। अमजद खान पहले खलनायक थे जिन्होंने गब्बर के गेटअप में उत्पादों का समर्थन किया था। अपनी लोकप्रियता के साथ अजीत को पीछे छोड़ते हुए, उन्होंने अधिक परिष्कृत और बर्बर आपराधिक भूमिकाएं निभाईं। हालांकि अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र ने शोले फिल्म में शानदार अभिनय किया, लेकिन यह फिल्म गब्बर के बारे में थी। इस चरित्र के रूप में अमजद ख़ान ने अपने करियर में सबसे शानदार अभिनय किया है।गब्बर सिंह इतना मंत्रमुग्ध कर देने वाला किरदार था कि फिल्म रिलीज होने के दशकों बाद भी लोग याद करते हैं और जब भी फ़िल्म टीवी पर आती है, गब्बर सिंह के प्रभाव का आनंद लेते हैं।
आईकॉनिक डायलॉग:-
- “कितने आदमी थे”
- “जो डर गया समझो मर गया”
- “होली कब है, कब है होली”
बॉलीवुड इतिहास के अन्य महत्वपूर्ण एवं दमदार विलेन (खलनायक)
मकड़ी- शबाना आज़मी (मकड़ी), डॉ. डैंग- अनुपम खेर (कर्मा), कांचा चीना– संजय दत्त (अग्निपथ), गोकुल पंडित– आशुतोष राणा (दुश्मन), लंगड़ा त्यागी– सैफ़ अली ख़ान (ओमकारा), जबर सिंह– विनोद खन्ना (मेरा गांव मेरा देश), लाला– कन्हैयालाल (मदर इंडिया), सर जुडा– प्रेमनाथ (कर्ज), महारानी– सदाशिव अमरापुरकर (सड़क), चिनॉय सेठ– रहमान (वक्त), राका– प्राण (जिस देश में गंगा बहती हैं), डोंग– अमरीश पुरी (तहलका), कात्या– डैनी (घातक), बुल्ला– मुकेश ऋषि (गुंडा), अल्लाउद्दीन खिलजी– रणवीर सिंह (पद्मावत), तेजा– अजीत (जंजीर), अन्ना– नाना पाटेकर (परिंदा), लौंठिया पठान– किरण कुमार (तेज़ाब), बॉब विस्वास– सास्वत चटर्जी (कहानी), बलवंत राय- अमरीश पुरी (घायल), चतुर सिंह चीता– डैनी (क्रान्तिवीर), जयकान्त– प्रकाश राज (सिंघम), राहुल– शाहरुख ख़ान (डर)।
{अपडेट दिनांक:- 14 अक्टूबर 2020}