वक़्त / Waqt (1965)
शैली- ड्रामा-फैमिली-रोमांस (2 घंटे 58 मिनट) रिलीज- 28 जुलाई, 1965
निर्माता- बी आर चोपड़ा निर्देशक- यश चोपड़ा
लेखक- अख्तर मिर्जा, अख्तर उल ईमान
गीतकार- साहिर लुधियानवी संगीतकार- रवि
संपादन– प्राण मेहरा सिनेमैटोग्राफ़ी– धर्म चोपड़ा
मुख्य कलाकार
- बलराज साहनी – लाला केदारनाथ
- राज कुमार – राजा चिनोय / राजू
- सुनील दत्त – एडवोकेट रवि खन्ना / बबलू
- शशि कपूर – विजय कुमार / मुन्ना
- साधना – मीना मित्तल
- शर्मिला टैगोर – रेनू खन्ना
- अचला सचदेव – लक्ष्मी केदारनाथ
- रहमान – चिनॉय सेठ
- मदन पुरी – बलबीर
- मनमोहन कृष्ण – श्रीमान मित्तल
- लीला चिटनिस – श्रीमती मित्तल
- जीवन – अनाथालय प्रमुख
कथावस्तु
लाला केदारनाथ (बलराज साहनी) नगर के एक संपन्न व्यपारी है जो अपने तीन बेटों (राजू, बबलू, मुन्ना) व पत्नी (अचला सचदेव) के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे होते है। एक बार अपने पुत्रों के जन्म समारोह में उनकी मुलाकात एक ज्योतिषाचार्य से होती है जो उन्हे वक़्त की अहमियत बतलाते है, परंतु केदारनाथ उनके तर्क को अस्वीकृत कर अपनी मेहनत को ही सर्वश्रेष्ठ बताते हैं और अपने तीनों पुत्रों के भविष्य को स्वंय बनाने की घोषणा करते हैं। उसी रात एक भीषण भूकंप में उनका घर-बार सब नष्ट हो जाता है तथा वे अपने परिवार से बिछुड जाते हैं, परिवार की तलाश में केदारनाथ से अनजाने में एक कत्ल हो जाता है और वे जेल चले जाते हैं।
वक़्त के साथ तीनों पुत्र बड़े होते हैं, ज्येष्ठ पुत्र राजा (राजू) एक चोर बन जाता है जो चिनॉय सेठ के लिए काम करता है, मंझला रवि (बबलू) एक संपन्न दंपत्ति को मिलता है जहाँ वह अच्छी परवरिश पाकर एक वकील बनता है और छोटा पुत्र विजय (मुन्ना) अपनी माँ के साथ गरीबी में जीवन व्यतीत करता है तथा स्नातक होने के पश्चात भी ड्राइवर की नौकरी करता है। कई रोमांचक मोड से गुजरती हुई कहानी एक बार फिर बिछुडे हुए परिवार को मिला देती है। अंत में लाला केदारनाथ मनुष्य जीवन में वक़्त की अहमियत को समझते हैं तथा अपने पुत्रों को भी यही नसीहत देते हैं कि वक़्त ही आदमी को बनाता है और वक़्त ही आदमी को बिगाडता है।
गीत-संगीत
फिल्म के सभी गीत साहिर लुधियानवी द्वारा लिखे गए हैं जिन्हें संगीतकार रवि ने अपने सुरों से सजाया है।
- ऐ मेरी जोहरा जबीं (मन्ना डे)
- वक्त से दिन और रात (मोहम्मद रफ़ी)
- कौन आया (आशा भोंसले)
- दिन है बहार के (आशा भोंसले, महेन्द्र कपूर)
- हम जब सिमट के (आशा भोंसले, महेन्द्र कपूर)
- मैने एक ख्वाब सा देखा है (आशा भोंसले, महेन्द्र कपूर)
- चेहरे पे खुशी छा जाती है (आशा भोंसले)
- आगे भी जाने न तू (आशा भोंसले)
सम्मान एवं पुरस्कार
- फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (1966)- कुल 5 पुरस्कार अपनी झोली में डाले।
- सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता- राज कुमार
- सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखन- अख्तर उल-इमान
- सर्वश्रेष्ठ निर्देशक- यश चोपड़ा
- सर्वश्रेष्ठ कहानी- अख्तर मिर्ज़ा
- सर्वश्रेष्ठ छायाकार (रंगीन)- धर्म चोपड़ा
रोचक तथ्य
- ये बॉलीवुड की पहली मल्टीस्टारर सुपरहिट फिल्म थी। इसने अपने बजट से पांच गुणा कमाई कर मेकर्स को भी मालामाल कर दिया था सिनेमाघरों में लगातार 50 हफ्ते तक चलने वाली फिल्म साबित हुई।
- बिछड़ने और मिलने का फॉर्मूला किसी फिल्म में इससे पहले अशोक कुमार की फिल्म ‘किस्मत’ में ही दिखा था लेकिन यहां निर्देशक यश चोपड़ा ने ‘लॉस्ट एंड फाउंड’ को ऐसा फॉर्मूला बना दिया जो आगे चलकर नासिर हुसैन की फिल्म ‘यादों की बारात’ और मनमोहन देसाई की फिल्म ‘अमर अकबर एंथनी’ का स्टार्टिग प्वाइंट बना।
- इसका रीमेक तेलुगु में ‘भाले अब्बायिलु’ (1969) तथा मलयालम में ‘कोलिलाक्कम’ (1981) के रूप में हुआ।